विधौरी शुक्र का पौधा है. इसी से पञ्चकूट बनता है तथा अमावघ की शान्ति की जाती है. किन्तु यदि मँगल का किसी भी प्रकार से शुक्र का सम्बन्ध बनता है तो विधौरी का प्रयोग नहीं कर सकते। क्योकि पञ्चकूट का लालाद्रोण्ड (मेटोथियालीन ब्रोमाइड) मंगल रश्मि (डेल्टा किरण) को प्रदाहक (Highly Spasmodic Inflaming) तो बनाती ही है साथ में क्रियाशील रक्ताणुओं में विखण्डन भी पैदा करती है.
आप की कुण्डली में शुक्र अश्विनी नक्षत्र (मेष राशि) में है. आप को विधौरा के प्रयोग से पहले थोड़ा छान बीन कर लेना चाहिये था. यद्यपि बताने वाले ने ठीक ही बताया है किन्तु मंगल की स्थिति को नज़रअंदाज़ कर दिया गया है. जिससे आप की अस्थि विकृति जो मेटाकार्पस और फीमर में हो गई थी. वह तो ठीक हो गई. किन्तु टिबिया फिब्यूला पर प्रतिक्रया स्वरुप (Due to heavy chemical reaction) विद्रधि कुब्ज (फेनिंगुआ कारबंकल) हो गया.
महाशय, वनस्पतियाँ सदा हानि रहित नहीं होती है. चाहे एलोपैथी हो या बायोकेमी सब में वनस्पतियो का सहयोग लिया जाता है.
अभी आप कुंजरू के रस में सफ़ेद दूर्वा की लेई बना लें. कुटकी, गूगल एवं अमरवास के समभाग मिश्रण को दिगारी के पत्ते में लपेट कर उस प्रभावित जगह पर केले के रेसे से बाँध कर उस पर उपरोक्त लेई लगा दें. पूरा एक दिन इंतज़ार करें। अगले दिन उसे खोल दें. और प्रत्येक मंगल वार को केवल लेई उस स्थान पर लगाते रहें। साथ में अमूना मूँगा (Solopiya Coral) की मुद्रिका धारण कर लें.
21 दिन बाद मुझे बतायें।
विधौरा के स्थान पर माहुल या चंद्राकाश के प्रयोग का भी निर्देश कही कही दिया हुआ है. किन्तु माहुल सूर्य का प्रतिरोधक एवं चंद्राकाश राहु का प्रतिरोधक है. क्योकि ये वनस्पतियाँ प्रपन्ना जाति(Reptilian Order) की है. और शुक्र आरोही वर्ग (Pedophilia Category) की वनस्पतियो का प्रतिनिधित्व करता है.
अतः आँख बंद कर अंधाधुंध वनस्पतियो का भी प्रयोग नहीं करना चाहिये।
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