Menu
blogid : 6000 postid : 712777

नागार्जुन यन्त्र

वेद विज्ञान
वेद विज्ञान
  • 497 Posts
  • 662 Comments
++++++नागार्जुन यन्त्र+++++
प्रनिपत्य्मुवाच शम्भो ऋषि भार्गव पुलहात्मजः।
यन्त्रं नागार्जुनाम दत्वा परोपकारं जगत्कृतः।।
जीवमसुरेज्यो वा कृतोपार्जितम दोष कुजं।
जघ्नाति तवाशीषेण विधिना सिद्धम भवेद्यदि।।
(रहस्य भार्गवम् अध्याय 48 नागार्जुन प्रभाग)
भगवान शिव के पैरो में पड़कर पुलह ऋषि के पुत्र स्वरुप मुनि भार्गव कहते है कि हे प्रभो! आप ने यह नागार्जुन यंत्र प्रदान कर जगत पर बहुत उपकार किया है. इसको यदि विधि पूर्वक सिद्ध कर के धारण किया जाय तो विच्छृप्त गुरु एवं शुक्र तथा अमुञ्जित मंगल दोष को यह समूल नाश करता है.
विधि– दिये गये चित्र के अनुसार भोजपत्र के टुकड़े को काट कर बनावे। इसके कोनो पर आठो योगिनियों को दिये आकार में गूलर के दूध से चिपकावे। ये योगिनियाँ केले या मदार के पत्ते को काट कर बनावे। बीच में एक बड़ा सूर्य आकार चित्र के अनुसार बनावे। उसके बीच में एक छेद छोड़ दे. उस पर माता भगवती का विग्रह अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुसार सोने, चाँदी या ताम्बे का स्थापित करे.
अच्छी तरह ज़मीन को गोबर से लिपाई कर के उसके बीच में आठ दश पान का पत्ता बिछाकर उस पर इस यंत्र को स्थापित करे. उसके बाद धुप जलावे। जिधर धुवाँ जा रहा हो उधर बैठे। चाहे भले दक्षिण दिशा ही क्यों न हो.
उसके बाद एक ताम्बे की पतली छड़ इतनी लम्बी लेवे जो यंत्र से आसन के नीचे तक आ सके. फिर कुश के आसान पर आराम से बैठ जावे। देवी का पञ्चोपचार पूजन करे. उसके बाद क्रम से आठो योगिनियों का पूजन करे. और अंत में एक एक लाल फूल 108 बार निम्न मन्त्र पढते हुए देवी पर चढ़ाता जाय.—-
ॐ विजिम्भ्रमाणात्मकामाही या जिह्वा सानुवर्तिनी।
ताम माम प्रति रक्षन्तु भो यन्त्रं यत्रिकल्भकम।”
उसके बाद पञ्चामृत से देवी को आसन से उठाकर स्नान करावे।
उसके बाद दशाङ्ग, गूगल, लाख, तिल, शुद्ध देशी घी, सफ़ेद तिल एवं सप्तान्न से उपरोक्त 108 मन्त्र से हवंन करे. फिर शुद्ध जल से देवी को धोकर “देवि प्रपन्नातिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोखिलश्व। ————” आदि क्रमशः अग्रिम दशो मंत्रो से आरती करे. फिर अपनी सामर्थ्य के अनुसार देवी को पञ्चमेवा का भोग लगावे। और फिर आसन सहित देवी को उठाकर किसी पवित्र स्थान या पूजा के स्थल पर रख देवे।                            यह बहुत ही साधारण एवं आसानी से सिद्ध हो जाने वाला यंत्र है. और इसका अब तक बहुत अच्छा परिणाम मिला है.               ++++नागार्जुन यंत्र के सम्बन्ध में कुछ स्पष्टीकरण++++
यंत्र बनाते समय यह ध्यान में रखें कि इसके चारो कोनो पर जो दो दो सितारो के आकार की योगिनियां बनायी गयी है उनके प्रत्येक के पाँच पाँच कोण निकले हुए है. इन प्रत्येक कोनों का दो नुकीला कोना रेखा को पार करते हुए बाहर तक होना चाहिये। तथा एक कोना उस यंत्र के कोने में स्पर्श करते होना चाहिये।
यन्त्र को गोबर से लिपाई की गई जमीन पर ही केले के पत्ते पर रखना चाहिये। तथा केले के पत्ते का चिकना हिस्सा ही ऊपर होना चाहिये। यदि ज़मीन की लिपाई गोबर से सम्भव न हो तो बेसन, चावल का पानी एवं गुड (1:20:3 के अनुपात में) एक में मिलाकर लिपाई करें। तथा उसके ऊपर केले के पत्ते पर यंत्र रखें।
बैठने का आसन केवल कुश का बना होना चाहिये। तथा ताम्बे या पीतल का छड़ केले के पत्ते पर रखे यंत्र के नीचे से लेकर आसन के नीचे तक आना चाहिये।
पूजा के समय अगरबत्ती का प्रयोग कदापि न करें। केवल धुप ही जलाएं तथा हवन करते समय केवल आम की भरपूर सूखी लकड़ी का ही प्रयोग करें।
यंत्र पूजा के समय कोई अंगूठी, यंत्र या ताबीज गण्डा आदि शरीर पर नहीं होना चाहिये।
हवन सामग्री में बताये गये सामान के अलावा और कुछ मिला हुआ नहीं होना चाहिये।
पूजन करते समय वस्त्र चाहे किसी रँग का हो किन्तु केवल सूती होना चाहिये। तथा आवश्यक रूप से सिर ढका होना चाहिये।
सूचना- तकनीकी त्रुटि के कारण इस यंत्र का चित्र यहाँ पर पोस्ट नहीं हो पा रहा है. इसके चित्र के लिये कृपया फेसबुक पर मेरे नागार्जुन नामक पोस्ट को पढ़ें। वहाँ मैंने चित्र दे रखा है.
पण्डित आर के राय
Mail- khojiduniya@gmail.com

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply