कलिकाल का पूरा पूरा प्रभाव चल रहा है. किसी को सही शिक्षा नहीं पसंद आयेगी। लोगो को उचित अनुचित जानने या निर्णय लेने की न तो बुद्धि होगी और न ही इच्छा होगी।
आप को पता होगा कि रामचरित मानस की रचना संवत 1631 में हो चुकी थी. और अभी संवत 2071 चल रहा है. अब आप ही सोचिये कि आज से लगभग 500 वर्ष पहले अपनी रचना में तुलसीदास ने इस कलियुग के सारे लक्षण देख लिये थे.—
संवत सोलह सौ इकतीसा। करी कथा प्रभु धरि हरि शीशा।
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जाके नख अरु जटा विशाला। सोई तापस कराल कलिकाला।।
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मातु पिता निज सुतहि बोलावहि। उदर भरे सोइ धरम सिखावहिं।
गुरु शिश अंध बधिर कर लेखा। एक न सुनइ एक नहीं देखा।।
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सान्याल जी, आज भक्तो से ज्यादा भगवान जन्म ले चुके है. जितने मानने वाले नहीं उससे ज्यादा धर्म, पंथ और सम्प्रदाय बन चुके है. जितने शिष्य नहीं उससे ज्यादा गुरु जन्म ले चुके है. जिन्हें यह पता नहीं कि धर्म क्या है वे सबसे बड़े धर्म उपदेशक कहलायेगें। जिन्हें ज्योतिष शब्द के ही उद्भव का ज्ञान नहीं वे त्रिकाल दर्शी ज्योतिषाचार्य कहलायेगें। आप स्वयं देखिये इसकी भविष्यवाणी संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास ने आज से लगभग पांच सौ वर्ष पहले ही कर दी थी. देखिये आज उनकी भविष्यवाणी कितनी सत्य या झूठ है?
ते बिप्रन्ह ते पाँव पूजावे। उभय लोक निज हाथ नसावे।।”
जहाँ देखिये वहीं एक पंथ या सम्प्रदाय का आश्रम मिल जाएगा। ज्ञान बाँटने की दुकान खोलकर खूब कमाई की जायेगी। तरह तरह के लुभावने चमत्कार दिखाकर लोगो को ठगा जायेगा। बुद्धिहीनता और धैर्य की कमी के कारण लोग इनके भुलावे में पड़कर भटक रहे है. किसानो एवं श्रमिको को अभावग्रस्त जीवन जीते हुए भटकना पडेगा। इसके विपरीत साधु सन्यासी और यती आदि सजे सँवरे सुसज्जित महल में रहते हुए विलासिता की जिंदगी जियेंगें===
“+++++++++++++++++. बहु भाँति सँवारहिं धाम यति.”
सान्याल जी, बहुत विकराल स्थिति आ चुकी है. यदि लोगो को यह बात बताई जाय तो उन्हें उलटा ही समझ में आयेगा। घोर कलिकाल ने सबकी बुद्धि उलट कर रख दी है.
आप स्वयं देखिये, किसी ग्रन्थ या पुराण में जिस धर्म या सम्प्रदाय या पन्थ का नाम नहीं मिलेगा उन सबका अवतार होता चला जायेगा और लोग आँखें बंद कर के अंधे की भाँति उनके चेले बनते चले जायेगें।
बस जगत जननी माता दुर्गा का नाम मन्त्र पढते रहिये और कालक्षेप करते रहिये।
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