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मूँगा (Coral) प्रजाति एवं उपयोगिता

वेद विज्ञान
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**********मूँगा (Coral) प्रजाति एवं उपयोगिता**********
श्री लोकेश अग्रवाल जी आप की उत्कंठा पर यह विवरण दे रहा हूँ ====
मूँगा प्रधान नवरत्नों में से दूसरा सबसे मूल्यवान रत्न है.”रत्न आख्यायिका” में लिखा है-
“वर्मिणार्जितम् वाल्म्य पञ्चदशानि बहूर्ध्वते।
सुधांशेनार्जितम् युह्यमुत्कृष्टमुपदेयताम्।।”
मूँगा शब्द हिंदी मूल का नहीं है. इसे हिंदी में प्रवाल कहा जाता है.
प्र===प्र का अर्थ प्रकृष्ट, उच्च या सर्वोत्तम होता है.
वाल==वाल का अर्थ वाल्मी या मिटटी (Clay) होता है. इसी मिटटी (वाल्मी) के कारण बाल्मीकि नाम पड़ा था. इसका विशद विवरण मैं अपने जागरण जंकशन पर प्रकाशित लेखो तथा इस फेसबुक के वाल पर भी दे चुका हूँ. यहाँ उसका उल्लेख न करते हुए मैं इसके विविध उपयोग को बताना चाहूँगा।
प्रवाल या मूँगा मंगल का रत्न माना जाता है. मंगल को भौम या मेदिनीसुत भी कहा जाता है. कहावतो एवं उपलब्ध पुराणादि ग्रंथो के अनुसार भूमि ने अपने पुत्र के प्रीत्यर्थ अपनी छन्नित एवं विशिष्ट रूप से संग्रहीत उत्कृष्ट मृत्तिका का निष्पादन वर्मी नामक कीटो द्वारा करवाया। जिससे भूमिपुत्र मंगल प्रसन्न होकर स्वोपार्जित कष्ट, विघ्न, बाधा, अरिष्ट आदि का निवारण करते है.
मूँगा कई तरह का होता है. आयुर्वेद रत्नाकर में कहा गया है कि रक्तवर्ण प्रवाल सर्वोत्तम, लाल माध्यम तथा सफ़ेद निकृष्ट होता है. इसको ही “फलित उपादानम्” में कहा गया है कि अकेले मंगल के अशुभ होने-यथा वक्री, नीचस्थ आदि होने पर, रक्त प्रवाल, मंगल के अशुभ भाव गत – जैसे छठे, आठवें, बारहवें या मांगलिक के कारण अशुभ होने पर लाल प्रवाल तथा पाप ग्रसित या अस्तादि के कारण अशुभ होने पर सफ़ेद मूँगा धारण करना चाहिये। “याँग चाउ यिंग” (कही कही इसे याँग ली वाँग भी कहा गया है) नामक चीनी बौद्ध यात्री ने अपने संस्मरण में लिखा है कि
“ज्ञान के अभाव में जिस मृत्तिका खण्ड (मूँगा) की उपयोगिता एवं उपादेयता समस्त मँगोलिया में अनभिज्ञ थी. उसके बारे में महान प्राचीन हिन्दू वैज्ञानिक खगोलशास्त्री भास्कराचार्य (शायद भारद्वाज ऋषि) के सोदाहरण एवं प्रायोगिक प्रत्यक्ष प्रस्तुति को देख कर मुझे क्षोभ हुआ है कि मैं आज तक चमत्कारिक भूखण्ड पर भले रहा किन्तु चमत्कार मुझे आर्य उपनिवेश में ही दिखाई दे रहा है, जिससे मैं आज तक पराङ्गमुख रहा. वास्तव में यह चमत्कारिक मृत्तिका विशेष {(Magic Clay) जिसे आज मूँगा कहा जाता है,} अनेक बहुमूल्य प्रभावों से भरी पड़ी है.”
++++++++किन्तु ध्यान रहे आज कल इतने नकली मूँगा या कृत्रिम मूँगा बाज़ार में आ गए है कि मूँगा पहचानना एक बहुत कठिन कार्य हो गया है. आज कल चूना, गेरू, पोटाश एवं गूगल के मिश्रण का बना मूँगा बाज़ार में मिल रहा है. जिसे स्वयं इसके विक्रेता जौहरी तक नहीं जान पाते है. इसका परिक्षण परालावण्य भस्म (ट्राई नाइट्रेट सोडियम ब्रोमाइड) के विलयन से किया जा सकता है. किन्तु इस रासायनिक परिक्षण के उपरान्त मूँगा का मौलिक स्वभाव विकृत हो जाता है. अतः कोई वैदिक रसायनज्ञ ही उचित प्रकार से कर सकता है.
इसके अलावा इसके धारण के पूर्व इसकी निर्धारित प्रजाति, वजन तथा मुहूर्तादि के निर्धारण हेतु अच्छी तरह से कुण्डली का अध्ययन तथा अनुशीलन अवश्य कर लेना चाहिये। अन्यथा इसका दुष्प्रभाव भी होता है. “समय प्रदीप” में इसका विवरण उपलब्ध है. जैसे देखें-
“रेवत्यश्वधनिष्ठाषु हस्तादिषु  पञ्चसु।
शङ्खविद्रुम मुक्तानां परिधानं प्रशस्यते।।”

पण्डित आर के राय

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