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माणिक्य (Ruby)

वेद विज्ञान
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माणिक्य (Ruby)
बहुत पश्चात्ताप के साथ कहना पड़ रहा है कि वर्तमान समय में लोग रत्नो के नाम पर बेतहासा ठगे जा रहे है. अभी आज एक महाशय माणिक्य लेकर मेरे पास उसे जागृत (Activated) करवाने आये थे. मैंने उनके कहे अनुसार उसकी पूजा कर के दे दिया। मैंने उनसे यह नहीं कहा कि यह अशुद्ध या नकली है. क्योकि वह बेलगाम (कर्नाटका) से आये थे. मैं क्यों उन्हें दुखी करूँ? बस मैंने इतना ही किया कि कोई दान दक्षिणा उनसे नहीं लिया। बेचारे और भी दुखी होते। कम से कम उन्हें संतोष तो है कि उन्होंने माणिक पहना है.
माणिक का दूसरा नाम “लाल” भी है जिसे संस्कृत में “पद्मराग” कहते है. इसके नाम “लाल” से लोग अनुमान लगाते है कि यह लाल रँग का होता है. किन्तु यह बिलकुल गलत है. देखें आचार्य वराह को “वृहत्संहिता” के 81वें अध्याय के प्रथम श्लोक को-
“सौगन्धिककुरुविन्दस्फटिकेभ्यः पद्मरागसम्भूतिः।
सौगन्धिकजा भ्रमराञ्जनाब्जजम्बूरद्युतयः।।1।..
कुरुविन्दभवाः शबला मन्दद्युतयश्च धातुभिर्विद्धाः।।
स्फटिकभवा द्युतिमन्तो नानावर्ण विशुद्धाश्च।।2।
अर्थात सौगन्धिक, कुरुविन्द एवं स्फटिक पत्थर से पद्मराग या माणिक्य उत्पन्न होते है. सौगन्धिक धातु की खदानों में मिलने वाला माणिक्य भौरे जैसा या काजल जैसा या नीले कमल जैसा कांतिमान होता है. अथवा जामुन के रस जैसा होता है. कुरुविन्द धातु से उत्पन्न माणिक्य हलके सांवले, कम चमकदार, भीतर किसी अन्य धातु या मिटटी के कणो से युक्त, दागदार होते है. स्फटिक के साथ पैदा होने वाला माणिक्य तेजस्वी, चमकदार, अनेक रंगो वाला विशुद्ध विशुद्ध होता है.
नारद ने भी यही कहा है–
“शशरुधिरजपाबन्धूकसन्निभाः पारिजातपुष्पाभाः।
तरुणतरणित्विषो वातएव खलु पद्मरागाः स्युः।।”
अर्थात खरगोश के रक्त जम जाने के पश्चात जो नीलिमा आ जाती है या पारिजात पुष्प के आधार भाग का जो निचला नीला काला हिस्सा होता है, माणिक्य उसी रँग का होता है.
माणिक्य में रविराँझ (मैगनीज) एवं विपर्दिक (ट्रिटोनियम) की बहुलता होती है. यदि इसे मरुतारा (ग्रामीण इलाको में इसे गोरौना कहते है) के पत्ते के रस एवं पीले सरसो की लेइ में लपेट दिया जाय तो इसका रँग या लेइ का रँग बदल जायेगा। सिल्वर ब्रोमाइड (AgSO4Br12+HP2O24) से इसका अवक्षेप भी नीला हो जाता है.
किन्तु वर्तमान समय में जो माणिक्य उपलब्ध है उसमें ऐलुमिनियम, क्रोमियम एवं आयरन ज्यादा है जो भस्म आदि के रूप में औषधि के लिये तो प्रयुक्त हो सकता है किन्तु ग्रहबाधा निवारण या ज्योतिष के लिये निरर्थक है. क्योकि ऐलुमिनियम का अवशोषण त्वक् प्रणाली (Epidermic System) से नहीं हो सकता है.
श्रीलंका से प्राप्त होने वाले माणिक्य में हल्का पीलापन होता है. बर्मा के माणिक्य कम गहरे रंग के होते है. थाईलैंड के माणिक्य थोड़ा गहरे रँग के होते है.
सूर्य के अशुभ फल के निवारणार्थ इसका प्रयोग किया जाता है. इसके रूप, रँग एवं आकार प्रकार के निर्धारण के लिये कुण्डली का अनुशीलन आवश्यक है.
पण्डित आर के राय
Email- khojiduniya@gmail.com

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