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बोये पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय?

वेद विज्ञान
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बोये पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय?

लोकान्तरं सुखंम पुण्यं तपोदान समुद्भवम्।

सन्ततिः शुद्ध वंश्या हि परत्रेह च शर्मणे।।

अर्थात तप और दान पूजा पाठ आदि से जो पुण्य मिलता है उससे परलोक में सुख मिलता है. किन्तु शुद्ध वंश कुल में उत्पन्न संतति परलोक और इस लोक दोनों में सुख देती है.
=====किन्तु आज कल तो भाड़ में जाय कुल, वंश, जाति और गोत्र। या तो स्कूली शिक्षा में उच्च दक्षता हो या खूब पैसा कमाने वाला दूल्हा-दुल्हन हो या यौन उद्वेग को शांत करने का जूनून ===यही आज शादी का पैमाना रह गया है. कुल, परम्परा, जाति, मान, मर्यादा सब यौनसुख और पैसे के सुख में बह गये है. परिणाम यह हो रहा है कि बुढ़ापे में माँ बाप को घर से निष्काषित कर वृद्धाश्रम में फेंक दिया जा रहा है.
=====किन्तु जूनून में शादी रचाये जोड़ा यह भूल जाता है कि उसे भी वही राह देखनी पड़ेगी। अभी तो जवानी की उमंग, काम वासना का उद्वेग एवं पैसे की छतरी दिखाई दे रही है.
=====आज लड़का देख रहा है कि लड़की गोरी चिट्टी खूबसूरत लम्बी एवं पढ़ी लिखी है. बस शादी कर लिया। रूप सौंदर्य का खूब पान किया। और जब उससे भी सुन्दर कोई लड़की दिखाई दी तो फिर उधर लुढक गया. कारण यह है की उसने सुन्दर एवं गोरी देख कर शादी की थी. उसके कुल, वंश, मान सम्मान, आचार-विचार एवं मानमर्यादा से शादी नहीं की थी. तो यदि वह इसकी सुन्दरता और जवानी का जोश ठण्डा पड़ते देखेगा तो दूसरी जवानी एवं सुन्दरता को ढूँढेगा ही.
यही स्थिति लड़की की भी है. लड़की देख रही है कि लड़का हट्टा कट्टा, खूबसूरत एवं खूब पैसा कमाने वाला है. बस शादी कर लिया। और बाद में जब जोश ठण्डा पड़ा, हाथ पाँव ढीले पड़े तो उसने किसी और ऐसे ही पुरुष का दामन थाम लिया।
++++अब ऐसी माँ बाप से जन्मी सन्तान से कौन से सुख और क्यों आशा करनी चाहिये?

R. K. Rai

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