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मेहँदी (Henna) और पारलौकिक शक्तियाँ—-शास्त्र और विज्ञान की दृष्टि में

वेद विज्ञान
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मेहँदी (Henna) और पारलौकिक शक्तियाँ—-शास्त्र और विज्ञान की दृष्टि में
मेहँदी, मकोय एवं मंदार (आक) ये तीनो अप्रतिस्थ वर्ग की वनस्पतियाँ मानी जाती है. इन पर बुरी छाया का वास एवं इसी के साथ उनके दुष्प्रभाव के निवारण की भी क्षमता होती है.
+++++इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारे प्राचीन ऋषि मुनि उच्च श्रेणी के रसायनज्ञ एवं वनस्पति विज्ञान के महान वेत्ता थे. उन्होंने वनस्पतियो के चमत्कारिक रहस्य का सम्यक अध्ययन किया था. उपर्युक्त तीनो वनस्पतियो में एक तरह का पदार्थ पाया जाता है जिसे वैद्यक भाषा में अलर्क का नाम दिया गया है. आधुनिक विज्ञान सिर्फ इसमें डाई अमोनियम क्लोराइड को ही विश्लेषित कर सका है. शेष इसमें उपलब्ध पदार्थो का विश्लेषण नहीं कर सका है. और जटिल कार्बनिक यौगिक कह कर चुप है.
=====अलर्क एक ऐसा पदार्थ है जिसे उच्च स्तरीय तांत्रिक स्वयं कृत्रिम रूप से भी बनाते है. और इसमें कितनो की जान चली जाती है. कहते है कि यह इसलिये होता है क्योकि यह भूत-प्रेत एवं चुड़ैलों का अति प्रिय पेय पदार्थ है. और वे ही अलर्क बनाने वालो या तांत्रिको को मार डालते है. वास्तविकता यह है की यह अलर्क केंद्रीय सुषुम्ना प्रणाली (Central Vertebral System) के धूसर द्रव्य (Grey Matter) को इतना सांद्र (Concentrated) कर देता है कि संवेदना वाहिनियाँ (Sensual Ducts) विविध गाँठों (Clots) से अवरुद्ध (Blocked) हो जाती है. और प्राणियों की मृत्यु हो जाती है.
====आप ने देखा होगा कि सिरदर्द में मेहँदी का तेल बहुत मुफीद साबित होता है. सिर पर भी मेहँदी के पत्तो को पीस कर लगाया जाता है. जो केशरञ्जन (Hair Dye) के साथ साथ मष्तिष्क के तंतुओं को शिथिलता एवं शीतलता प्रदान करता है.
=====खैर यह तो आधुनिक विज्ञान की अब तक की आधी अधूरी खोज है. किन्तु आयुर्वेद का तंत्र एवं यंत्र प्रभाग इसका सूक्ष्म अध्ययन एवं विश्लेषण बहुत पहले कर चुका है.
——इस अलर्क से केवल मानसिक विकार जैसे मृगी (Epilepsy), योषाअपष्मार (Hysteria) दर्बुअपष्मार (Diphtheria), मष्तिष्क आघात (Brain Damage), वशीकरण (Hypnotism), अर्गलाविदर्यु (superheterodyne) के अलावा अन्य मनःकायिक (psychosomatic) व्याधियां एवं बाधाएं भी दूर होती है.
——-मेंहँदी का जो अति प्राचीन नाम उपलब्ध होता है वह वाराही संहिता में “मुद्गल” के नाम से बताया गया है. मुद्गल एक ऋषि का नाम था. उनके पुत्र थे ऊष्णीत जो एक तपस्वी वितथ्य की पालिता पुत्री सुरुचि से विवाह करना चाहते थे, किन्तु सुरुचि उतथ्य से घृणा करती थी. क्योकि ऊष्णीत मदिरा पान का घोर वशीभूत था. तथा आसुरी प्रवृत्ति का था. ऊष्णीत ने उसे आसुरी उपाय से ही वश में करना चाहा। उसने अपने पिता से ही सुन रखा था कि प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को दुर्गा माता काली के स्वरुप में मुद्गल पत्र (मेंहँदी के पत्ते) एवं बीज से अलर्क नाम की अति तीक्ष्ण मदिरा बनाकर उसका पान करती है. और उससे किसी को भी वशीभूत किया जा सकता है. उसने अपने हठ योग के आधार पर माता से मदिरा बनाने की विधि जान ली. लेकिन उसके प्रयोग की विधि नहीं जान पाया। उसने एक षडयंत्र के द्वारा सुरुचि को वह मदिरा पिला दिया तथा स्वयं भी पी लिया। और दोनों मर गये. ऋषि मुद्गल एवं मुनि वितथ्य को बहुत दुःख हुआ. चूँकि दोनों की मृत्यु अकाल हुई थी. अतः उनके उद्धार के लिये दोनों ने माता कालिका का स्तवन कर प्रसन्न किया। माता ने आशीर्वाद दिया कि सुरुचि मुद्गल के पत्ते तथा ऊष्णीत इसके बीज में वास करेगा। कथा बहुत लम्बी है. तब से मेहँदी का पत्ता रञ्जक (रँग रोगन, शोधन आदि) का तथा बीज भञ्जक (मारण, मोहन, उच्चाटन एवं वशीकरण आदि) का काम करने लगा.
=====मेहँदी के पत्ते का प्रयोग जनसाधारण में प्रचलित है. किन्तु बीज के द्वारा बना ताबीज अनेक नज़र-गुज़र, भूत-प्रेत, चुड़ैल-टोना आदि तथा घर में आई ऐसी अनेक बाधाओं का शमन करता है. मगधचीनी, मूसलीफेन, अरण्डी एवं मन्दार के बीज से बना ताबीज यदि शोधित कर बाँह, गले या कमर में बाँधा जाय तो उससे अनेक लाभ मिलते हुए देखा गया है. राजस्थान का पश्चिमोत्तर प्रान्त, आसाम, चटगाँव, छत्तरपुर तथा छत्तीसगढ़ के पूर्ववर्ती क्षेत्रो में इसका बहुत प्रचलन है. बिहार में दक्षिणी छोटा नागपुर का बहुत बड़ा हिस्सा इसके इस प्रभाव से परिचित है. उत्तर प्रदेश का हमीरपुर एवं झाँसी के अलावा इससे सटे मध्यप्रदेश के मुरैना तथा दँतिया आदि में इसका खूब प्रचलन है. वैसे सामान्यतया ग्रामीण क्षेत्रो में आज भी इसे माता जी के वृक्ष के नाम से जाना जाता है.
=====ऐसे ही अन्य अनेक सम्बंधित विवरण मेरे लेख के रूप में फेसबुक पर भी उपलब्ध है. देखें
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पण्डित आर के राय
Email- khojiduniya@gmail.com

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