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ज्योतिषीय औषधियाँ

वेद विज्ञान
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ज्योतिषीय औषधियाँ
मैं सभी जिज्ञासुओं का उत्तर यहाँ सामूहिक रूप से देना चाहूँगा। क्योकि लगभग चार हजार से ज्यादा लोगो का थोड़े अंतर से एक ही प्रश्न और कठिनाई पूछी गई है.
ज्योतिषीय एवं आयुर्वेदिक विवेचन से यह तथ्य स्पष्ट हो चुका है कि रक्त एवं जनन व्याधियाँ (Blood & Genital Diseases) प्रायः सदृश कारणों से ही होती है. रसमार्तण्ड को देखें-
“व्यश्रूः ववृक्कोस्खलितं निगदितायार्धृष्णयुष्यारी मूलेनषड्रसारिः।
अर्थात मंगल-सूर्य-राहु की वक्रोस्खलित या चतुर्विध कोई ऐसा सम्बन्ध जो 3, 6, 7, 8 एवं बारहवें घर में बने, रज्जुवाह, नीरव द्रव्य, ऊर्ध्वक एवं रसायुत को विकृत कर देते है.
इसका ज्योतिषीय सम्बन्ध देखें-
“तर्युद्रोणस्कापृथरध्वमारुह्यं रविकुंजतमस्फरिकपणफरे लगनेन्द्वात्।”
अर्थात रवि-राहु के प्रतिनिधि गजतवा और सम्हालू, रवि-मंगल के लिये सीहोर एवं लसदपर्णी, मंगल-राहु के लिये डिठोहरी एवं चन्द्रपात तथा रवि-मंगल-राहु के लिये गिलोय, वच एवं तृणायुत प्रतिनिधि माने गये है.
अब यदि हम शारंगधर सँहिता को देखते है तो यहाँ पर निवारक औषधि के लिये वृद्धिक्रम में इनके आनुपातिक मिश्रण को ही उल्लिखित किया गया है. अर्थात===
वच, गिलोय, कुटकी, रसपीपरी, मल्लसिन्दूर आँवला, हरड़, बहेड़ा, बकायन छाल, चीता, शुद्ध गंधक, गूगल एवं जमालगोटा, गजतवा, सम्हालू, डिठोहरी एवं चन्द्रपात का ही मिश्रण बताया गया है.
यह योग नपुंसकता, रक्तविकार एवं बाँझपन का रामवाण उपाय है.
इस प्रकार ज्योतिषीय विश्लेषण के उपरांत औषधि द्रव्य का निर्धारण कर आयुर्वेदिक सूत्र प्रणाली को अपनाना चाहिये।
“न ह्यस्ति सुतरामायुर्वेदस्य पारम्। तस्मादप्रमत्तः अभियोगेस्मिन् गच्छेत् अमित्रस्यापि बचः यशस्यं आयुष्यं श्रोतव्यमनुविधातव्यं च +++++++.”
पण्डित आर के राय
Email- khojiduniya@gmail.com

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