एक “सेलिब्रिटी” ज्योतिषाचार्य को देखें। इस ज्योतिषाचार्य ने जागरण जंकशन पर 6 सितम्बर 2012 को प्रकाशित मेरे लेख “क्या भाव या घर में बैठा ग्रह फल देता है?” पर अपनी बेवकूफी भरी टिप्पड़ी दे डाली है. आप भी थोड़ा इस लिंक पर जाकर देखें-
रेलवे बुकस्टाल से एक ज्योतिष की कोई किताब खरीद लिये, चोटी बढ़ा लिये, गेरुवा वस्त्र पहनकर लंबा तिलक लगा लिये और विविध वेबसाइट पर एक एक एकाउंट “ज्योतिष वाचस्पति, वास्तु विशारद, तंत्र विशेषज्ञ, रमलसम्राट, कर्मकाण्ड मार्तण्ड नृत्यगीत मर्मज्ञ श्री श्री 8001″ की भयंकर आकृति वाली लम्बी चौड़ी उपाधि लगाकर मूर्धन्य ज्योतिषी की भूमिका में अवतरित हो जा रहे है.
जिन्हें यह नहीं मालूम कि ज्योतिष मन्त्र-तंत्र-यंत्र नहीं बल्कि वैदिक गणित के अटल एवं ठोस सिद्धांत पर आधारित श्रमसाध्य किन्तु पूर्णविज्ञान है, वह अपनी दार्शनिक विचारधारा एवं टिप्पड़ियाँ देने का भी दुस्साहस करने लगे है.
सब ज्योतिषियों ने “लकीर का फ़कीर” बनते हुए मात्र यही परम्परा अपनाई है कि बुध शुक्र दोनों सूर्य से 48 अंशो से दूर नहीं जा सकते। और इसी के आधार पर आज भी कुंडली बनाकर फलादेश करते हुए आम जनता को मूर्ख बनाते चले जा रहे है. जब की सौर मण्डल का ग्रहचक्रिक सिद्धान्त यह बताता है कि सौरमण्डल में वृहस्पति की सातवीं परिक्रमा पूरी होते ही बुध-शुक्र 3 अंश 15 विकला अपनी कक्ष्या में आगे निकल जाते है.
ये ज्योतिषी यह भी ध्यान नहीं देते कि विंशोत्तरी आदि महादशाओं की गणना वर्तमान समय में अश्विनी से खिसकते हुए कृत्तिका से आरम्भ हो रही है. जब कि प्रवर्तन काल में यह प्रथम नक्षत्र अश्विनी से हुआ करती थी.
और तो और, वर्तमान ज्योतिष को एक निश्चित ठोस एवं प्रामाणिक दिशा प्रदान करने वाले महामति वराहमिहिर को भी झूठा प्रमाणित करने का पुरजोर प्रयत्न किये है. जिन्होंने स्पष्ट रूप से अपनी कालजयी रचना और सिद्धांत ज्योतिष के स्तम्भ स्वरुप “वृहज्जातकम्” के ‘राजयोगाध्याय” नामक ग्यारहवें अध्याय के श्लोक संख्या 20 में बताया है कि सूर्य-बुध की परस्पर दूरी 300 अंशो से भी ज्यादा हो सकती है===
“गुरुबुधसितलग्ने सप्तमस्थे अर्कपुत्रे, वियति दिवसनाथे भोगिनाम जन्म विद्यात्।
अर्थात लग्न में गुरु-बुध-शुक्र तथा सातवें शनि हो, दशवें सूर्य हो तो इस योग में उत्पन्न व्यक्ति भोग भोगनेवाला, समृद्ध, धनी एवं विलासी होता है.
आप स्वयं देखें, सूर्य कैसे शुक्र-बुध से दशवें जाएगा अर्थात 300 अंशो पर जायेगा जबकि वह आज कल के ज्योतिषियों द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया है की दूसरे घर से तीसरे घर तक नहीं जा सकता। इसका तात्पर्य यह कि महामति वराह लबार, मूर्ख या पोंगा पंडित थे.
===तोता रटंत पंक्तियों को रट्टा मार मार कर तथा गणित आदि करण सिद्धांत आदि के कूपमंडूक धूर्त पण्डित क्या ज्योतिष की सेवा करेगें?
==== और उलटे यह लुटेरा मुझे ही धमका बैठा।
===अपने को ज्योतिषाचार्य कहने वाले फेसबुकिया पण्डित क्या इसकी सच्चाई परखने की जहमत उठायेगें?
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments