अनेक लोगो से मुझे सूचना मिली है कि बड़े बड़े उद्भट्ट एवं प्रकाण्ड ज्योतिषाचार्य कहते है कि सन्ध्यादशा, पाचकदशा आदि कोई दशा ज्योतिष में नहीं होती।
मैं और सब आचार्यो- श्रीपति, नीलकण्ठ, भाष्करभट्ट, रामानुजाचार्य, देवल, गर्ग, वराह एवं वशिष्ठ आदि का उल्लेख न कर जिस आचार्य का नाम बेचकर आज अनेक उदर भरणपोषण रत तथाकथित ज्योतिषाचार्यो की दुकान चल रही है उसी ज्योतिष्पितामह महर्षि पाराशर का उल्लेख करना चाहूँगा—-
वृहत्पाराशर होराशास्त्र के दशाभेदाध्याय के 47वें अध्याय के श्लोक संख्या 204 को देखें–
“परायुषो द्वादशांशस्तत्सन्ध्या सद्भिरीरिता।
दशानां तन्मिताब्दाः स्युर्लग्नराशिक्रमान्मता।।”
अर्थात परमायु (120) का द्वादशांश (10) वर्ष आयुर्दाय की संध्या होती है जो भाव के फल का समय बताती है. लग्नादि क्रम से प्रत्येक राशि की दशा संध्यादशा कहलाती है. जिसे गणित करके स्पष्ट किया जाता है.
——–इसी अध्याय का श्लोक संख्या 206 देखें–
“त्रिभागं वसुकोष्ठेषु लिखित्वा तत्फलं दिशेत्।
एवं द्वादशभागेषु पाचकानि प्रकल्पयेत्।।”
संक्षेप में संध्यादशा में भावो की अन्तर्दशा को पाचकदशा कहते है.
======ऐसे ज्योतिषाचार्यो को इस पाराशरी गणित में क्यों उलझना? सीधे कह देना अच्छा है कि ऐसी कोई दशा नहीं होती। नहीं तो गणित पढ़ना पडेगा। और यदि गणित ही पढ़ना होता तो क्या कही नौकरी नहीं मिलती जो दुकान खोलनी पड़ी है?
कम्प्यूटर के सॉफ्टवेयर में कुण्डली का डाटा भरवाने वाले भी तो ऐसे ही पंडित रहे होगें। तो जिन्हें स्वयं ही नहीं पता कि पाचकदशा क्या होती है वह सॉफ्टवेयर इंजिनियर को क्या बतायेगा? और इसमें सॉफ्टवेयर इंजिनियर या प्रोग्रामर की क्या गलती? जो डेटा पण्डित ने बताया सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर ने उसकी प्रोग्रामिंग करके सॉफ्टवेयर तैयार कर दिया। और बस कम्प्यूटर कुंडली तैयार। एक मिनट में कुण्डली पाइये। और आजकल इसी कुण्डली का प्रचलन, प्रचार प्रसार एवं महत्ता है.
आप स्वयं देखें, किसी भी कुंडली के सॉफ्टवेयर में छायादशा, संध्यादशा, पाचकदशा, तारादशा, शूलदशा आदि का विवरण नहीं मिलेगा।
करणदशा, सारंगदशा तथा व्योमा दशाओं का तो खैर कभी सॉफ्टवेयर बन ही नहीं सकता। क्योकि इसमें पहले आकाश में निर्धारित ग्रहनक्षत्र को प्रत्यक्ष देखकर सिद्धांत से मिलाते है. और दोनों में अंतर होने पर गणित कार के इसे प्रत्यक्ष के समतुल्य बनाते है.
===अब आप स्वयं सोचें, कम्प्यूटर का सॉफ्टवेयर बाहर निकलकर आकाश में झाँक कर देखेगा क्या कि गणित के अनुसार ग्रह का उत्तरी शर पूरब में होना चाहिये फिर यह उत्तर क्यों है?
इसे ही सिद्धांत एवं संहिता आदि ग्रंथो में दिग्गणित के नाम से जाना गया है.
====कुंडली सॉफ्टवेयर अच्छे गणितज्ञ ज्योतिषाचार्यो को निठल्ला, आलसी एवं निरुपयोगी बनाने का माध्यम एवं ढोलकपोल ढिंढोरा पीटने वाले पाखण्डी ज्योतिषाचार्यो के लिये वरदान स्वरुप है.
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