लोहित द्वारा उग्र को, श्रेष्ठ कर्मो से मित्र देवता को, दुर्वृत्त्य से रूद्र को, क्रीड़ा करने में समर्थ रक्त से इन्द्र को, बलप्रकाशन में समर्थ रक्त से मरुतो को, हर्षित से साध्य देव को, कण्ठ से भव को, पार्श्व की मध्य रक्तिमा से रूद्र को, यकृत के रस से महादेव को, स्थूलांत्र से शर्व को, नाड़ी रक्तिमा से पशुपति को प्रसन्न करता हूँ.
=====विचार करें—
(1)– पहले रूद्र को दुर्वृत्त्य से और उसके बाद पार्श्व की मध्य रक्तिमा से रूद्र को प्रसन्न का क्या नियोजन-प्रयोजन?
(2)– रक्त के चार प्रकार स्पष्ट कर दिये गये है—
(अ)- क्रीड़ा करने में समर्थ रक्त जिससे इन्द्र प्रसन्न होते है.
(ब)–बलप्रकाशन में समर्थ रक्त जिससे मरुत देव प्रसन्न होते है.
(स)–पार्श्व की मध्य रक्तिमा जिससे रूद्र प्रसन्न होते है.
(द)–नाड़ी की रक्तिमा से महादेव प्रसन्न होते है.
===========आज हजारो लाखो साल बाद आधुनिक चिकित्सा विज्ञान जान पाया है कि रक्त के चार प्रकार होते है—
(1)-A , (2)-B , (3)-AB , और (4)- O
========श्री आचार्य जी थोड़ा प्रयत्न कीजिये, थोड़ी रूचि दिखाइये, थोड़ा अध्ययन कीजिये, वेदमंत्रों की गुरुता, महिमा एवं सर्वोत्कृष्टता स्थापित कीजिये। आप लोगो को स्वदेशी-विदेशी चंदे एवं प्रशिक्षण संस्थान चलाने से धन भी प्राप्त हो रहा है. उसका सदुपयोग कीजिये। अशुद्ध मंत्रोच्चार से परिणाम कितना भयंकर हो सकता है, इसे समझाइये।
====मैं तो वैसे न कोई शास्त्री हूँ, न आचार्य। ऊपर से क्रूर कर्मा फौजी। न तो संयम है न धैर्य। और न ही मुझे इस विषय से सम्बंधित कार्य करने की अनुमति है. इसके अलावा मेरे पास साधन भी नहीं है. न मेरा कोई “आफिस” है न कोई “दूकान” न ही कोई आश्रम है न कोई संस्थान।
++++बस अपने अर्जित अल्प ज्ञान का ढिंढोरा इस नेटमीडिया पर पीट रहा हूँ.
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