—गृहस्थ लोग अपनी संतान को इस (धर्म की रक्षा तथा इससे मिलने वाले लाभ को जनसामान्य में वितरित कर उन्हें सुखी रखने वाली) सेना में भरती कराते हुए कह रहे है कि—हे मरुतो! (=मा रुत इति मरुत अर्थात मत रोओ, प्रसन्न रहो) तुम्हारी महिमा ही मानव राष्ट्र की बुनियाद है, जिसकी चर्चा सब करते है. और जो हमें यह उपहार करने के लिये प्रेरित करती है. हे यज्ञार्थ अपनी आहुति देने वाले सच्चे “यज्यु” मरुत लोगो! अपने नाम का दान हमें भी देते रहो. तुम्हारी महिमा सुनकर तुम्हारे नामो पर रखे हुए अपने नामो की शान रखने वाले ये हमारे बच्चे, हम गृहस्थ लोगो का सर्वश्रेष्ठ उपहार है. इसे प्रीति पूर्वक स्वीकार कीजिये। यह हमारा एक एक बच्चा सहस्रों का मूल्य रखता है. हमारे घर का यही सार है. इसने हमारे घर में परिवार के निमित्त अपनी भावनाओं का दमन करना सीखा है. यही भावना सैनिक जीवन के काम आयेगी।—
“ॐ यदि स्तुतस्य मरुतो अधीथेत्था विप्रस्य वाजिनो हवीमन।
—हमने यह उत्कृष्ट हवि (=हवन सामग्री) यथानुपात एवं यथोचित रूप से भेंट की है. यदि इस प्रशंसनीय हवि को आप ने ठीक सम्हाल लिया तो हमें शीघ्र सुवीरोचित धन मिलेगा। जिसे कोई शत्रु छीन नहीं सकता।
—इनकी उपस्थिति में हमारी गॉवों या हमारे मनुष्यो को कौन मार सकता है? ये हमारी रक्षा करते हुए हमें सदा सुख पहुंचायें। कह दो हत्यारों से- गो हत्यारों से कि “अब तुम्हारी वध शक्ति हमसे दूर दूर रहे”, हे वीरो! तुम सुख भण्डार लिये सदा हमारी ओर झुके रहो.
+++++++++++क्या आप देख रहे है इन मंत्रो में कि हवन से निकला धूम, लौ एवं विद्युत तरंग किस तरह यज्ञकर्त्ता को अक्षय कवच प्रदान कर रहा है?
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments