====घर का भेदी लंका ढावे। आर्य जाति और सनातन धर्म को सबसे ज्यादा नुकसान अपने ही स्वार्थी एवं पाखण्डी अनुयायियों द्वारा हुई है. जब से इसे विविध सम्प्रदायों, वर्गों, उपवर्गों एवं बहुदेववादियों में विभक्त किया गया तब से यह धर्म रसातलोन्मुखी हो गया.
आज राधा स्वामी सम्प्रदाय, रामकृष्ण मिशन, राधावल्लभ सम्प्रदाय तथा काली, हनुमान, कृष्ण, गणपति, भैरव आदि देवताओं तथा सम्प्रदायों का क्या औचित्य है? क्या सनातन धर्म दूषित, पाखंडपूर्ण, निराधार या अविश्वसनीय हो गया था? जिससे इन सारे सम्प्रदायों को जन्म लेना पड़ा? क्या राम श्रेष्ठ है कृष्ण से? क्या शिव कमजोर है हनुमान से? तो फिर एक ही की पूजा क्यों नहीं?
कह सकते है कि श्रद्धा जिस पर आ जाये या जिस पर विश्वास जम जाये उसी धर्म या देवता का पालन करना चाहिये। तो ऐसी घृणित, हिंसक एवं कपोलकल्पित श्रद्धा किस काम की जिससे परिवार, समाज एवं देश में घृणा, हिंसा, बिलगाव एवं पाखण्ड फैले? क्या राम में धन देने की शक्ति नहीं है जो कुबेर की पूजा की जाय? क्या चण्डिका के पास शत्रु सँहार करने की क्षमता नहीं है जो डाकिनी, हाकिनी या पिशाचिनी या तारा, छिन्नमस्ता की अराधना की जाय? तो यदि एक ही धर्म-सनातन, एक ही जाति-आर्य एवं एक ही शास्त्र-वेद से समस्त कार्यो-मनोकामनाओं की सिद्धि हो सकती है तो बहुदेववाद, बहुपंथवाद, बहुशास्त्रवाद के वितंडावाद का आतंकवाद फैलाने के पीछे क्या उद्देश्य?
यदि वास्तव में तथाकथित ‘हिन्दू” आर्य परम्परा, सनातन धर्म एवं वेद के समृद्धि एवं सर्वश्रेष्ठता के पोषक, संरक्षक एवं शुभचिंतक है तो एक ही देव-परमेश्वर जिसमें समस्त देवीदेवता अपनी अपनी शक्ति-अस्तित्व के साथ समाहित है, की पूजा-अराधना पद्धति अपनानी पड़ेगी। एक ही शक्ति- जिसमें सरस्वती, लक्ष्मी, काली, चण्डिका सब समाहित है, की आराधना-सिद्धि करनी पड़ेगी। एक ही शास्त्र वेद-जिसमें समस्त पुराण, दर्शन, स्मृति एवं उपनिषद् समाहित है, का अध्ययन-मनन करना पडेगा।
यदि अपनी डफली अपना राग अलापेगें तो इस सनातन या तथाकथित “हिन्दू” धर्म की रक्षा का ढोल पीटकर चिल्लाना, नारा लगाना आदि सस्ती लोकप्रियता, फेसबुकिया नेता या तामझाम वाली पंडिताई की दुकान का विज्ञापन-प्रचार-प्रसार तो हो सकता है, किन्तु इसका उद्धार-पुनरुद्धार महज एक कल्पना-एक दिवास्वप्न होकर ही रह जायेगा जिससे भोले भाले, सीधे सादे श्रद्धालु जन को दिग्भ्रमित या पथभ्रष्ट किया जा सके.
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