तुलसी वैसे भी एक औषधीय पौधा है. जो व्यक्ति सूर्योदय के समय तुलसी के समञ्जरी पौधे के ऊपर पाँच मिनट तक सिर झुकाकर श्वास प्रश्वास लेता है उसे श्वसनतंत्र से सम्बंधित व्याधि तो नहीं ही होती है, विपरीत इसके उसकी बौद्धिक क्षमता अबाध गति से बढ़ती है.
प्रवीथी एक तरह का यंत्र है. यद्यपि इसका उल्लेख मत्स्य पुराण के बीसवें अध्याय में वीरक प्रसंग में दिया है किन्तु शब्दों को तोड़ मरोड़ कर व्याख्याकारों ने इसका अलग ही अर्थ लगा दिया है. इसीलिये अनेक प्रतियो में भयवश व्याख्याकारों ने इसे क्षेपक का रूप दे दिया है. किन्तु इसका पता चलता है जब इस पुराण के समस्त श्लोको की गणना की जाती है. अस्तु, मुख्य प्रसंग पर आते है.
—–यह प्रवीथी तुलसी के सूखे तने, इलायची के सत (=तेल नहीं), केशर, शिखिपर्णी (शिलाजीत) चूर्ण एवं मकौघ (=बरियारा) की जड़ से बनता है. इसे माता सती (=पार्वती?) ने नन्दी से बनवाकर वीरक को प्रदान किया था.
तुलसी के सूखे तने को सफाई से धो लेवें। उसकी पतली टहनियाँ-शाखाएँ काटकर अलग कर लें. पुनः उस तने से छिलके को उतार लेवें और उस छिलके को लगभग एक किलो पानी में इतना उबालें कि आधा पानी जल जावे। उस छिलके समेत पानी को किसी ऐसे बर्तन में पलट लें जिसमें वह तना डूब जाय. यदि तना बड़ा पड़ता है तो उसके दो या तीन टुकड़े कर लें. रात भर पानी में डूबा रहने दें. अगले दिन उस तने को बाहर निकालें तथा पानी को किसी पेड़ के जड़ में डाल दें. और किसी तेज धारवाले हथियार से अपनी जन्म राशि की संख्या के बराबर टुकड़े कर लें. अर्थात यदि राशि सिंह हो तो पाँच टुकड़े कर लें.
एक एक रत्ती इलायची का सत, केशर, शिखिपर्णी एवं मकौघ आदि लेकर एक साथ पत्थर के खरल में कम से काम 100 बार कूटें एवं मिलावें। क्योकि “मर्दनं गुणवर्द्धनम्” अर्थात जितना ज्यादा मर्दन होगा उसमें उतनी ही गुणवत्ता आएगी। जब लेइ बन जाय तो उसे किसी बर्तन में निकाल लें. खरल को छटाँक भर पानी से धोकर उस पानी में लेइ को थोड़ा पतला करें। और बरगद, कटहल या पलाश के पत्तो की पाँच दोनिया बनाकर उस पतले किये लेइ को उनमें बाँटकर रख लेवें।
अब निम्न मन्त्र 26-26 बार पढ़ते हुए प्रत्येक तने के टुकड़े को दोनिया में अलग अलग डालते चले जायें। पांचो दोनिया को उसी तरह रात भर और दिन भर वैसे ही रहने दें. तीसरे दिन सूरज निकलने के बाद उन टुकड़ो को निकालकर बिना धोये धुप में सुखायें। दो दिन, चार दिन जितने दिन में सूख जाय उसे सूखने दें. उसके बाद अपनी राशि के रंग के अनुसार रँग वाले धागे में सुन्दर तरीके से उसे आगे पीछे ग्रन्थिबन्धन कर गूँथ लें. और शनिवार को छोड़कर किसी भी दिन धारण कर लें.
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