क्या आप का घर चौकोर, आयताकार या वर्गाकार नहीं है?-वास्तु- विवरण
यह कोई चिन्ता का विषय नहीं, बल्कि चिंता का विषय उसके अनुरूप सिद्धांत एवं शास्त्रीय मान्यताओं का उल्लंघन है.
याज्ञवल्क्य ने अपनी स्मृति में लिखा है कि आवास की आकृति चाहे कुछ भी हो, यदि शास्त्रीय मान्यताओं के अनुरूप उसका निर्माण हुआ है तो उसकी कम से कम आयु 120 वर्ष तो होगी ही.
भरतमुनि ने त्रिकोणात्मक आवास को निम्न प्रकार स्पष्ट किया है—-
आप यह देखें कि आप के घर का आकार क्या है. किसी गणितज्ञ वास्तुविद से इस आवासीय परिसर का लघु, वृहत, मध्यम एवं निसर्ग क्रान्ति विन्दु निर्धारित करवा लें उसके बाद उसके वास्तु को स्थापित करने का आकार एवं दिशा निर्धारित करें।
यदि आवास बन चुका है तो पूर्ववत निसर्ग क्रान्ति विन्दु निर्धारित कर देखें कि वास्तु की कौन सी दिशा या अँग प्रभावित है. उसका अवरोध नियमतः करें। यदि प्रभावित नहीं है तो आवास सदा सुखकारी है.
अतः भूखण्ड के आकार या आवास के आकार से भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है.
क्योकि इसी लिये शास्त्रो में वास्तु के कई प्रकार बताये गये है – यथा- सर्वतोभद्र, नन्द्यावर्त, वर्धमान, स्वस्तिक, रूचक, सिद्धार्थ, सुक्षेत्र, चुल्ली, यमसूर्य, दण्ड, वात एवं पक्षघ्न आदि जो भूखण्ड के माप एवं आकार प्रकार के आधार पर निर्धारित होते है.
ध्यान रहे, यदि भूखण्ड चौकोर, आयताकार या वर्गाकार ही क्यों न हो, यदि आवासीय परिसर के अनुरूप वास्तु विधान का पालन नहीं किया गया है तो उस दोष का परिणाम तो भुगतना ही पडेगा —-
“याम्याहीनं चुल्ली त्रिशालकं वित्तनाशकरमेतत्।
पक्षघ्नमपरया वर्जितम् सुतध्वंसवैरकम।।
(वृहज्जातकम् अध्याय 52 श्लोक 38)
अर्थात चुल्ली वास्तु वाले घर में धननाश तथा पक्षघ्न वास्तु में निवास से वंशनाश होता है.
“पूर्वापरयुतं गेहं चुल्लीनामार्थनाशकृत।
दक्षिणोत्तरशालाढयं काचसंज्ञं विरोधकृत्।।”
(किरणाख्य तंत्र )
इसमें भी चुल्ली एवं काच नाम वाले वास्तु अशुभ बताये गये है.
“चुल्ली तु याम्यया हीनं विशालं शालया तु तत.
कुलक्षयकरं नृणां सर्वव्याधिभयावहम्।।
(मत्स्यपुराण)
अतः चाहे भूखंड का आकार कुछ भी हो, यदि वास्तुविधान उसके अनुरूप एवं अनुकूल है तो वह आवास सदा सुखदायी होगा।
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