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गठिया, ग्रह एवं आयुर्वेद

वेद विज्ञान
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गठिया, ग्रह एवं आयुर्वेद
जन्म कुण्डली में छठे, सातवें या आठवें भाव में धनु, मकर या कुम्भ या द्वादशांश कुण्डली में छठे, सातवें या आठवें भाव में वृषभ, तुला या कन्या राशि हो तो व्यक्ति चालीसवें वर्ष में ही गठिया रोग से ग्रसित हो जाता है.
निदान—शोधित सुरंजना- एक तोला, शोधित गूगल- एक छटाँक,
तथा
चित्रक, पीपलामूल, अजवायन, कालाजीरा, वायविडंग, अजमोद, देवदारू, चव्य,  छोटी इलायची, सेंधानमक, कूठ, रास्ना, गोखरू, त्रिफला, नागरमोथा, सोंठ, मिर्च, पीपल, दालचीनी, खस, यवक्षार, तालीसपत्र और तेज पत्र —–सब एक एक तोला।
उपरोक्त सम्पूर्ण सामग्री को लगातार एक सप्ताह तक प्रतिदिन 200 बार कूटें। यदि और ज्यादा कूटते है तो और उत्तम रहेगा।  क्योंकि आयुर्वेद का यह प्रधान नियम है कि —“मर्दनं गुण वर्द्धनम्।”
सातवें दिन कूटने के बाद उसमें एक तोला शुद्ध गाय का घी डालकर खूब अच्छी तरह मिलायें। और एक शीशे के मर्तबान में पलट लें.
अब देखें कि तत्काल स्थिति में अर्थात रोग के शुरुआत काल में किसकी पाचक दशा थी.
यदि मकर-कुम्भ हो तो- नागभष्म और लौहभष्म दोनों एक एक तोला
यदि धनु या कन्या हो तो-वंगभष्म एवं रौप्यभष्म दोनों एक एक तोला,
यदि वृष या तुला हो तो -अभ्रकभष्म और मण्डूरभष्म दोनों एक एक तोला,
लेकर मर्तबान के मिश्रण में मिलाकर दो दिन ढक्कन खोलकर धूप में सूखने दें.
तीसरे दिन उसमें गिलोय का क्वाथ इस अंदाज से डालकर कुटाई करें कि उस मिश्रण से गोलियाँ बन सकें। फिर 3-3 रत्ती की गोलियाँ बनाकर रख लें. और प्रतिदिन दो दो गोली भोजन के बाद दो बार एक तोला रास्ना क्वाथ के साथ लें.
उपरोक्त मिश्रण एक सफल औषधि है.
मैं सेना में उन जवानो को भी इस योग से ठीक होते देखा है जो मिलिट्री अस्पताल और सिविल की दवा से निराश-हताश हो चुके थे. आयुर्वेद में इसका  वर्णन थोड़ा भिन्न है.
पण्डित आर के राय
Mail- khojiduniya@gmail.com

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