यदि कुण्डली में छठे, आठवें या बारहवें भाव में मेष, सिंह, वृश्चिक, कन्या या मीन राशि हो तथा कही भी राहु-मंगल, शनि-बुध, केतु-सूर्य या चन्द्र-राहु की युति हो
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द्वादशांश कुण्डली में छठे, आठवें या बारहवें कर्क, तुला, मकर या मिथुन राशि हो तथा किसी भी भाव में सूर्य-राहु, शनि-मंगल, केतु-बुध या सूर्य-शनि की युति हो
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36 वर्ष की आयु होते होते व्यक्ति कठिन चर्म रोग से ग्रसित हो जाता है.
निदान====सर्व प्रथम हिंगुलोत्थ पारा, शुद्ध गंधक, सुहागे की खील, ताम्रभष्म, बंगभष्म, सोनामक्खी भस्म, सेंधानमक, काली मिर्च, कान्त लौह और चाँदी भस्म —सब एक एक तोला, तथा स्वर्ण भस्म 2 तोला लेकर एक में खूब महीन कूट पीस कर मिला लें.
उसके बाद यदि
मंगल- राहु की युति हो तो शुद्ध वंशपत्री एवं बाकुची एक तोला,
सूर्य-शनि युति हो तो हरताल, चकौड़ (पंवाड) एवं हरिद्रा खण्ड सब एक एक तोला,
शनि-बुध युति हो तो दन्तीमूल और मजीठ एक एक पाव,
सूर्य-केतु युति हो तो त्रिकुटा और गिलोय दोनों एक एक छटाँक,
बुध-केतु युति हो तो गूगल शुद्ध, भांगरा एवं त्रिफला तीनों एक एक पाव,
शनि-मंगल युति हो तो दालचीनी और वायविडंग दोनों एक एक छटाँक,
सूर्य-राहु युति हो तो रस सिन्दूर एवं रौप्यभस्म दोनों चार चार तोला,
चन्द्र-राहु की युति हो तो तालीस पत्र, गूगल एवं रससिन्दूर दो दो छटाँक,
इस को अतिरिक्त रूप से ऊपर वाले मिश्रण में मिलाकर एरण्ड का तेल इसमें इतना ही मिलायें कि गोलियां बन सकें। उसके बाद इस सारे मिश्रण को इमामदस्ते में डाल कर 500 बार कुटाई करें। यदि अधिक भी हो तो कोई बात नहीं। जब गोलियां बनने योग्य हो जायें तो तीन तीन रत्ती की गोलियाँ बनाकर सुखा लें. तथा दो दो गोली सुबह शाम भोजन के बाद मजीठ या खैर के क्वाथ -दो तोला, के साथ लें.
औषधि लेने के दौरान पूर्ण रूपेण शाकाहारी रहना पडेगा। इत्र, सुगंध, पावडर, सुगन्धित या वासित तेल पूर्णतया निषिद्ध है. आवश्यकता होने पर मेहंदी एवं नीम के पत्ते को उबाल कर और उसे पानी में मिलाकर स्नान करें।
इस योग में संदेह की कोई गुंजाइस नहीं है.
आयुर्वेदिक ग्रंथो में भी इस योग की बहुत प्रशंसा है. किन्तु देव वश मिश्रण एवं विधि में ज्यादा अंतर दिखाई पड़ता है. लगता है जैसे किसी दुष्ट ने किसी लोभ या दबाव में इसके मूल श्लोक में छेड़ छाड़ किया है. यह योग भी मेरा अपना परखा एवं आजमाया योग है.
विशेष- अच्छा होगा कि जिसकी कुण्डली में यह योग हो तो वह लग्न या द्वितीय भाव की संध्या दशा में षष्ठेश, सप्तमेश या अष्टमेश की महादशा आने से पूर्व ही यह उपाय कर लिया जाय.
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