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क्या विंशोत्तरी पद्धति भ्रम मूलक है?

वेद विज्ञान
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क्या विंशोत्तरी पद्धति भ्रम मूलक है?
====एक महानुभाव ज्योतिषाचार्य ने ऋषियों के मत का खंडन करते हुए एक अपनी अलग विचार धारा प्रस्तुत किये है. और सामान्य जन को उलझाने का प्रयास किये है? वैदिक गणित को भ्रामक बताते हुए उन्होंने आधुनिक पाश्चात्य गणित की श्रेष्ठता स्थापित करने का सतत प्रयत्न किया है. और ज्योतिष की एक नई विधा “गत्यात्मक ज्योतिष” का आविष्कार कर स्वयं भू “कालप्रवर्तक” बन बैठे है.
खैर, यह कोई नई बात या चौंकाने वाला विषय नहीं है. क्योकि कलिकाल में ऐसे ज्योतिषाचार्यो का आविर्भाव तेजी से और बहुत बड़ी संख्या में होगा। तभी तो धर्म, कर्म, आचार, व्यवहार एवं भक्ति, श्रद्धा आदि का मूलोत्खनन संभव हो सकेगा। और कलियुग का नाम सार्थक होगा।
यह पोस्ट मुझे इसलिये लिखना पड़ा क्योकि पिछले फरवरी महीने से आज शाम तक लगभग चार सौ से भी अधिक ऐसे महानुभावो का सन्देश मिला जिनके बारे में उनके बताये सारे गणित उलटे पड़े. तब मैंने भी उत्सुकता उनके पोस्ट को देखा। वैसे यह व्यक्ति है बहुत शातिर दिमाग का. इस व्यक्ति ने अपने पोस्ट पर मात्र उन्ही व्यक्तियों का कमेंट रखा है जिनके बारे में इसने कुछ सही बताया है. और जितनो ने नाराजगी दिखाई उनका कॉमेंट डिलीट कर दिया है. नाम नहीं लिख पा रहा हूँ. फेसबुक पर ढूंढें, इस महाशय के विग्रह का प्रत्यक्ष दर्शन उपलब्ध है.
====एक बात बतायें, एक ही ग्रह के नक्षत्र के स्वामी होने एवं राशि का स्वामी होने में अंतर नहीं है?
====क्या एक व्यक्ति के केवल अपनी संतान के पिता होने में और परिवार का मुखिया होने में अंतर नहीं है?
====जब कोई व्यक्ति एक बाप की भूमिका में होता है तो उसका उत्तरदायित्व सीमित होता है. किन्तु जब वह परिवार के मुखिया की भूमिका अदा करता है तो उसके उत्तरदायित्व का दायरा विस्तृत हो जाता है.
अब यदि सूर्य उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का स्वामी होगा तो केवल 13 अंश 20 कला के दायरे में फल करेगा। ज्योतिष गगन मण्डल के मार्तण्ड स्वरुप आचार्य वराह मिहिर को देखें–
“अथ दक्षिणेन लंकाकालाजिनसौरिकीर्णतालिकटाः।
गिरिनगरमलयदर्दुरमहेंद्रमालिन्द्यभरुकच्छा: . (11)
कंकटकङ्कणवनवाशिबिकफ़णिकारकोंकणाभीराः।
आकरवेणावर्तकदशपुरगोनर्दकेरलकाः।। 12
कर्नाटमहाटविचित्रकूटनासिक्यकोल्लगिरिचोलाः।
क्रौञ्चद्वीपजटाधरकावेर्यो ऋष्यमूकश्च।।13
=========================
बलदेवपट्टनम् दंडकावनतिमिंगिलाशना भद्राः।
कच्छों अथ कुञ्जरदरी सताम्रपर्णीति विज्ञेया।।16
(वृहत्संहिता नक्षत्रकूर्माध्याय 14)
अर्थात ===
दक्षिण में लंका, कालाजिन, सौरिकीर्ण, तालिकट, गिरिनगर, मलय, दर्दुर व मालिन्द्य (तीनो पर्वत) भरुकच्छ प्रदेश।
कंकट, कंकण, वनवासी, शिविक, फणिकार, कोंकण, आभीर, आकर, वेणावर्त अर्थात वेणावती नदी व आवर्तक देश, दशपुर, गोनर्द, केरल।
कर्णाट, चित्रकूट, नासिक्य, कोल्लगिरि, चोल, क्रौञ्चद्वीप, जटाधर, कावेरी नदी, ऋष्यमूक पर्वत।
वैदूर्य प्रदेश, अत्रीऋषि का आश्रम, वारिचर, धर्मपत्तन द्वीप, कृष्णावेल्लूर राज्य, पिशिक, शूर्पाद्रि व कुशुम पर्वत।
तुंबवन, कार्मणेयक, दक्षिणी समुद्र, तापसाश्रम, ऋषीक प्रदेश, काँची, मरुचिपट्टन, चेयर्यिक देश, सिंहल, ऋषभ.
बलदेव पट्टन, दंडकवन, तिमिंगिलाशन देश, भद्र, कच्छ, कुंजरदरी, ताम्रपर्णी नदी–
ये सब उत्तराफाल्गुनी, हस्त एवं चित्रा नक्षत्र के वर्ग के भूखण्ड है.
इसके अलावा सूर्य कृत्तिका एवं उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का भी स्वामी होता है.
===अभी आप स्वयं सोचें कि केवल उत्तराफाल्गुनी के स्वामी के रूप में सूर्य उपरोक्त भूखण्डो का भोग करता है. तो अभी उपरोक्त कृत्तिका एवं उत्तराषाढ़ा नक्षत्रो के वर्ग के भूखण्डो का भोग करेगा तो कितने प्रदेश अभी और आयेगें?
===अब देखें कि उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का केवल एक चरण ही सिंह राशि के अंतर्गत आता है. शेष तीनो चरण कन्या राशि के अंतर्गत आते है. तो भोग ज्यादा बुध का होगा या सूर्य का?
इसके अलावा भी बुध दो दो राशियों का स्वामी होता है.
===फिर यह कहना कि सबकी दशा में किसी एक ग्रह की अन्तर्दशा समान क्यों नहीं होती, क्या मूर्खता नहीं कहलायेगी?
इसके अलावा भी,
राशियों की बनावट भी अलग अलग है. कोई शीर्षोदयी, कोई पृष्ठोदयी और कोई उभयोदयी है.
ग्रहो की बनावट भी पृथक पृथक है–किसी का पृष्ठ भाग बर्फीला है, किसी का निचला सतह किसी और धातु का बना है, किसी ग्रह का सामने वाला हिस्सा अप्रकाशित है, किसी का पिछला हिस्सा अप्रकाशित है.
फिर यह कहना कि सबका प्रकाश (प्रभाव) या प्रभावित क्षेत्र या प्रभाव काल अलग अलग क्यों? एक ही ग्रह का अपनी महादशा में अन्तर्दशा ज्यादा और दूसरे ग्रह की महादशा में उसकी अन्तर्दशा कम समय की क्यों?
अब इन्हें कौन समझाये कि जिस ग्रह की बनावट ही एक दूसरे से भिन्न या कम हो उसमें उसके अनुपात में ही या अपनी स्थिति के अनुपात में ही तो भोग करेगा?
इन्हें मेरी फौजी भाषा में समझाने से शायद समझ जायें।
हावड़ा-जम्मू मार्ग पर हिमगिरि एक्सप्रेस ही जम्मू से हावड़ा जायेगी। किन्तु उसी मार्ग पर शालीमार एक्सप्रेस केवल जम्मू से दिल्ली तक ही जायेगी, हावड़ा तक नहीं जायेगी।
ज्योतिष के ज्ञान के लिये केवल गणित ही नहीं, बल्कि भूगोल, खगोल, त्रिकोणमिति, ज्यामिति, नक्षत्रविज्ञान एवं बीजगणित के अलावा वनस्पति विज्ञान, जन्तुविज्ञान, भौतिकविज्ञान एवं रसायनविज्ञान का भी अध्ययन आवश्यक है.
पण्डित आर के राय
Email- khojiduniya@gmail.com

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