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मोती के प्रकार एवं उनका लाभ

वेद विज्ञान
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मोती के प्रकार एवं उनका लाभ
(1)- गजमुक्ता-
“ऐरावतकुलजानां पुष्यश्रवणेंदुसूर्यदिवसेषु।
येचोतरायणभवा ग्रहणे अर्केन्द्वोश्च भद्रेभाः।। (वृहत्संहिता अध्याय 80 श्लोक 20)
अर्थात ऐरावत नस्ल के हाथियों में जिनका जन्म पुष्य, श्रवण नक्षत्र, सोमवार, रविवार, उत्तरायण, सूर्य-चंद्रग्रहण के दिन होता है उन “भद्र” संज्ञक हाथियों के मस्तक या दाँत में बड़े व् बहुत से मोती होते है जिन्हें गजमुक्ता कहते है.
उपयोग- जटिल ग्रंथि रोग, आमाशयिक व्रण, ब्रह्महत्या तथा मानसिक पाप इससे दूर होते है. इसका भस्म नहीं बनता। मंगलवार को शतभिषा नक्षत्र में चन्द्रमा के रहते गोधूली बेला में शिवलिंग की पूजा अर्चना कर के यदि धारण किया जाय तो सघन दरिद्रता या पापग्रसित दरिद्रता का भी नाश होता है.
(2)- सूकर मुक्ता एवं मत्स्य मुक्ता-
दंष्ट्रामूले शशिकांतसप्रभं बहुगुणं च वाराहम्।
तिमिजं मत्स्याक्षिनिभं बृहत् पवित्रं बहुगुणं च.। (अध्याय 80 श्लोक 23)
अर्थात सूकर मुक्ता चन्द्रमा के समान कांति वाली एवं बहुत से गुणों वाली होती है. इससे निकलने वाली पीताभ किरणों को महसूस किया जा सकता है. इसी प्रकार मत्स्यमुक्ता मछली की आँख की आकृति वाली तथा सीधी किरण वाली होती है.
उपयोग– पित्ताशयिक शोथ, पथरी, तन्तुगत ग्रन्थिलता, कोशिकीय विद्रधि, ग्रहण, विषघात, अशुभ चन्द्रमा के दोष इससे दूर होते है. कठिन शाप, कुलदोष, निपूतिका दोष आदि समाप्त होते है.
(3)- मेघमुक्ता-
“वर्षोपलवज्जातं वायुस्कन्धाच्च सप्तमाद भ्रष्टम्।
हियते किल खाद दिव्यैस्तडित्प्रभं मेघसम्भूतम्।।” (अध्याय 80 श्लोक 24)
अर्थात मेघमुक्ता ओले के समान आकाश में उत्पन्न, बिजली की चमक वाला होता है. पृथ्वी पर किसी भी सरीसृप वर्गीय प्राणी के संपर्क से यह विशेष ओला मोती बन जाता है.
उपयोग- मस्तिष्क के किसी भी भाग में गाँठ, मस्तिष्कगत रक्तस्राव, पागलपन, अनिद्रा, केमद्रुमयोग, अस्तगत या पापग्रस्त चन्द्र दोष, कर्जमुक्ति, ग्रहबाधा इससे दूर होते है. इसका सुधांशु के साथ सांद्र विलयन से तैयार भस्म मस्तिष्क ज्वर, रीढ़ दोष, मानसिक दुर्बलता भी बहुत प्रभावशाली ढंग से दूर होता है.
(4)- सर्पमुक्ता-
तक्षकवासुकिकुलजाः कामगमा ये च पात्रगस्तेषाम्।
स्निग्धा नीलद्युतयो भवन्ति मुक्ताः फणस्यान्ते।।” (अध्याय 80 श्लोक 25)
अर्थात तक्षक, वासुकि नागो के कुल में उत्पन्न सांपो के फन पर चिकना, चमकीला, नीली आभा वाला मोती होता है. कहा जाता है कि इस मोती को खुले आकाश के नीचे किसी चाँदी के बर्तन में पवित्र स्थान पर रख दें तो वर्षा होने लगती है.
सर्पमुक्ता धारण के लाभ-
“अपहरति विषमलक्ष्मीं क्षपयति शत्रून् यशो विकाशयति।
भौजंगं नृपतीनां धृतमकृतार्घम विजयदं च.. . (अध्याय 80 श्लोक 27)
अर्थात सर्पमुक्ता धारण करने से विपरीत लक्ष्मी भी प्रसन्न होती है. शत्रु नष्ट होते है. यश, कीर्ति एवं सर्वत्र विजय होती है. व्यावसायिक असफलता एवं दाम्पत्य जीवन के विघ्न इससे दूर होते है. इसका भस्म भी बनता है.
(5)- वंशमुक्ता व शंखमुक्ता-
“कर्पूरस्फटिकनिभं चिपिटं विषमं च वेणुजं ज्ञेयम।
शङ्खोद्भवं शशिनिभं वृत्तं भ्राजिष्णु रुचिरं च.” (अध्याय 80 श्लोक 28)
अर्थात कपूर या स्फटिक के समान, चपटा, बेडौल सा मोती बाँस में पाया जाता है. शङ्खमुक्ता चन्द्रमा के समान कान्ति वाला, गोल, चमकदार व आबदार होती है.
उपयोग-असाध्य रोगो से मुक्ति हेतु एवं क़र्ज़ निवारण हेतु वंशमुक्ता तथा दरिद्रता निवारण एवं शीघ्र विवाह हेतु शंखमुक्ता धारण करना चाहिये।
मोती धारण के लाभ-
“एतानि सर्वाणि महागुणानि सुतार्थसौभाग्ययशस्कराणि।
रुकशोकहंतृणि च पार्थिवानां मुक्ताफलानीप्सितकामदानि।।
व्यावहारिक एवं ग्रहस्थिति के अनुरूप धारण करने से रोग, शोक, भय, बंधन, दरिद्रता, संतानहीनता, कुलदोष आदि विविध उपद्रव शांत होते है.         विशेष– इसकी पहचान कोई रसरसायन विशेषज्ञ ज्योतिषाचार्य ही कर सकता है जिसने कार्बनिक और अकार्बनिक रसायन (Organic & Inorganic Chemistry) का गहन अध्ययन किया हो.
पण्डित आर के राय
Email-khojiduniya@gmail.com

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