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“पक्षयाग” एवं मंगल-शुक्र कृत दोष

वेद विज्ञान
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“पक्षयाग” एवं मंगल-शुक्र कृत दोष
===”निखिल सुधार्णव” में ऋषि मणिधर ने लिखा है-
‘”विपर्ययं कृत यथा पुरोधा वैवाहिकं संतति दोष हानिः।
कुर्यान्नरं यागपक्षश्च लुप्तः असुरेज्य वक्रो यदप्लावितं वा.। “
अर्थात शुक्र या मंगल के कारण वैवाहिक जीवन या संतान सम्बन्धी कष्ट उत्पन्न हो तो “पक्षयाग” अपरिहार्य रूप से करना अनिवार्य है.
किन्तु ऋषि नागदंत एवं पृथुलाश्व ने कहा है कि पक्षयाग के साथ ग्रह के प्रतिनिधि रत्नो का भी धारण अनिवार्य रूप से करने पर ही इससे मुक्ति मिल सकती है.
“न वासवा पक्षयागश्च दुर्धर्ष सुतमेदिनी भार्गव कृत वियागः।
रत्नानि तदनुत्सर्वण्यनीता अनुक्रमात् धारयते जनानाम्।।”
नारद, वशिष्ठ आदि ने भी इसका अनुमोदन किया है.
किन्तु हठ या पूर्वाग्रह वश या झंझट से बचने के प्रयत्न में लोग यह नहीं करते। या ज्यादा व्यय भी इसका कारण हो सकता है. किन्तु बाद में होने वाली हानि, परेशानी या कलंक इससे भी ज्यादा कष्टकर हो जाता है. और कोई निवारण नहीं हो पाता है.
पण्डित आर के राय
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