पितृदोष, देवदोष, सर्पदोष एवं ब्रह्म दोष नाशक तिरुपति विधान
वेद विज्ञान
497 Posts
662 Comments
पितृदोष, देवदोष, सर्पदोष एवं ब्रह्म दोष नाशक तिरुपति विधान-
“नागेशोभीतरिक्ता वालसीत्युपदायिनी या.
मुन्थकचर्मसुव्यालाभः सस्तीयं यद्वार्भकः।
चतुरस्रीति चवारणवाजिसतये दुंदरकं नभः.
पितृदेवसारंगोपेतः ब्रह्मदोषो खलु हन्यतानि।।”
अतिप्रसिद्ध वारुणी सम्प्रदाय के महान भिषगाचार्य नालाभ ने “रुद्रार्णवम्” में रूद्र-कालिका उपाख्यान में इसका विषद वर्णन किया है. कही कही इसे “तृप्ति विधान” भी कहते है. पौराणिक मतानुसार देवर्षि वशिष्ठ ने इन्हें अनार्य घोषित कर त्रित्सु नरेश द्वारा नीलनदी के पार खदेड़वा दिया था. जिनका ग्रहनक्षत्र आधारित औषधि अन्वेषण उच्चस्तरीय था. ====जिसे भी उपरोक्त दोष से पीड़ा हो वह
मंजीठ, नागरमोथा, कूड़े की छाल, गिलोय, कूठ, सोंठ, भारंगी, छोटी कटेरी, बच, नीम की छाल, हल्दी, दारू हल्दी, त्रिफला, पटल पत्र, कुटकी, मूर्वा, वायविडंग, विजयसार, साल, शतावर, त्रायमाणा, गोरखमुण्डी, इन्द्रजी, वासा, बाकुची, अमलतास का गूदा, शाखोटक, बकायन की छाल, करंज, अतीस, खस, धमासा, अनन्तमूल एवं पित्तपापड़ा प्रत्येक एक एक छटांक, धाय के फूल एक किलो —
इन सब वनस्पति एवं काष्ठ औषधियों को कूट पीस एवं कछड़पन कर एक जगह रखे. 18 सेर खदिर की छाल को उतने ही पानी में इतना पकावे की एक किलो के आस पास अंदाज से पानी बच जाय.
सम्बंधित दोष का रत्न (यथा-देवदोष के लिये पञ्चनाग या हारीत मणि, पितृदोष हेतु तापघ्नी या विरोचिका आदि) की मुद्रिका बनवाकर धारण करें।
काष्ठ-वनस्पति औषधि के एक छोटे चम्मच से आधा चम्मच औषधि सुबह शाम खदिर के एक चम्मच पानी के साथ सुबह शाम लें. यह खाड़ी तथा पूर्वी रूस के प्रांतो में सम्बंधित सदृश दोष निवारणार्थ सफलता पूर्वक प्रयुक्त होता है.
किन्तु अन्य स्थानो पर बहुत सारी काष्ठ एवं वनस्पति औषधियाँ सुलभ न होने के कारण इसका प्रचलन बहुत कम है.
यद्यपि इन अनुपलब्ध औषधियों-जड़ीबूटी आदि को विदेशो से मँगा लिया जाता है. किन्तु आज कल नकली काम करने में ज्यादा लाभ है. और विदेशो से ये सब मंगाने के बाद इसकी लागत बहुत बढ़ जाती है. इसलिये यह बहुत महँगा हो जाता है.
यद्यपि ज़रूरतमंद लोग फिर भी खरीदते ही है.
जैसा कि मैंने यह औषधि अपनी देखरेख में बनवायी। केवल 24 आदमियो को ही उपलब्ध हो सका. किन्तु यह औषधि एक आदमी को 48 हजार रुपये की पड़ गयी. यद्यपि बनाने वालो को कुछ भी लाभ नहीं मिला।
यही कारण है कि इसे हर जगह प्रयुक्त नहीं किया जा रहा है.
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments