ऊतकीय अर्बुद (Tissue Cancer), रक्तार्बुद (Blood Cancer), मांसपेशी, मज्जा, वसा,चर्म या ग्रंथि —-किसी भी अर्बुद या भगन्दर आदि का कोई भी इलाज़ आज की तारीख तक—-एलोपैथी में कुछ भी नहीं है.
वेद विज्ञान
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ऊतकीय अर्बुद (Tissue Cancer), रक्तार्बुद (Blood Cancer), मांसपेशी, मज्जा, वसा,चर्म या ग्रंथि —-किसी भी अर्बुद या भगन्दर आदि का कोई भी इलाज़ आज की तारीख तक—-एलोपैथी में कुछ भी नहीं है.
एलोपैथी मात्र इसका निरोध या अवरोध भर ही करता है. इसके मूल का नाश नहीं करता। मूल नाश के लिये एलोपैथी के पास एक ही रास्ता है—-शल्य चिकित्सा। और यह उपाय किसी अँग को अलग करता है, ऊतक, कोशिका या रक्त कनिका को नहीं।
——आज की तारीख तक तो एलोपैथी के पास कोई इलाज़ नहीं है, भविष्य की बात विधाता जानें।
किन्तु आयुर्वेद में इसका सफल एवं प्रभावी इलाज़ है.
यदि व्यक्ति का प्रार्णव द्रव्य —शायद आधुनिक चिकित्सा विज्ञान इसे मोनोसिनट्रेटाइटिस कहता है, आकृति में लम्बवत हो चुका है तो विरोचनी, गन्धर्वायन, विषुनाल एवं अमलतास,
यदि प्रार्णव द्रव्य- उतार-चढ़ाव वाला रूप धारण कर लिया हो तो गुडुची, तेलमखाना, वायविडंग, पञ्चखोरी एवं हरिद्रामाहू
यदि प्रार्णव द्रव्य- बीच बीच में गाँठ वाला हो गया हो तो सीसम, शॉल, सेमर, धारवना, बगोय
यदि प्रार्णव द्रव्य- दीवार से चिपकने वाला बन गया हो तो मकोय, गोखरू, हड़पड़ाव, ऊसलडंडी और सिमखान
एक साथ खैर की छाल के साथ पीसकर उसमें त्रिवंग भस्म, स्वर्ण भस्म, वज्र भस्म एवं यशद भस्म मिलावें। और अंत में रसबिलोय के सत में आवश्यकतानुसार इतना मिलावें ताकि आसानी से गोलियाँ बन सकें।
सुबह शाम बराबर भाग त्रिफला चूर्ण के साथ 120 दिन लेवें, अर्बुद (कैंसर) समूल नष्ट हो जायेगा।
====एलोपैथी में MTD और सल्फ्यूरिक क्लोराइड के यौगिकों से इसकी चिकित्सा की जाती है. जिससे पित्त एवं यकृत-वृक्क आदि की जघन्य एवं असाध्य अन्य व्याधियां एवं उपद्रव हो जाते है.
किन्तु वनस्पतियो से प्राप्त क्रोमोरिडेक्सॉन एवं ग्लाइसेक्सिल मेथोडिनेट इसे जड़ से मिटा देती है.
====प्राचीन भिषगाचार्य देवराज एवं आचार्य नारद के अनुसार प्रार्णव द्रव्यों पर क्रप्तु भाव (गुरु-राहु या शनि-बुध या केतु-चन्द्रमा या सूर्य-शनि या राहु-शुक्र युति के कारण उपद्रव) होने पर यह विकृति होती है. और सम्बंधित ग्रहो की तिर्यङ्क पाश वाली प्रतिनिधि वनस्पतियाँ इसे विकिरित भी नहीं होने देती तथा इसके पोषक केंद्र (फीडिंग सोर्सेस) को ग्रंथि आयुमा वाहिनी (Vectoglandular Duct) में उग्र दबाव से स्थाई रूप में परिवर्तित कर देती है या असामान्यवस्था में उसे पचाकर क्षुद्रांत्र (Small Intestine) को भेज देती है.
===वर्ष 2011 से पहले जिन्होंने इन औषधियों का प्रयोग किया वे आज भी इन रोगो से पूर्णतया मुक्त है. किन्तु एलोपैथी दवा का प्रयोग करने वाले मात्र एक वर्ष में ही इन रोगो द्वारा उग्रता पूर्वक संक्रमित हो चुके है.
आज तक मेरी दृष्टि में लगभग बीस हजार से ज्यादा मनुष्य इस प्रभाव वाले दिखाई दिए है.
आज यह पोस्ट भी मुझे मात्र इसलिये लिखना पड़ा क्योकि आज एक और महाशय समस्त इलाज कराने के बाद थक कर मेरे पास आये है. किन्तु अवस्था ऐसी है कि अब मैं भी अपने आप को कुछ कर पाने में असमर्थ हो चुका हूँ.
इनकी बुध की षोडशोत्तरी महादशा में षष्ठेश की संध्या दशा में एकादशेश की पाचक दशा चलनी शुरू हो गई है.
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