सूर्य- समस्त रसो को शोषित करना और उसको हजार गुना कर पुनः वर्षा के रूप में वापस करना सूर्य का स्वभाव है.
“सहस्रगुणमुत्श्रष्टे आदत्ते हि रसं रविः।“
रसो की संख्या 6 है जो षडदर्शनों में वर्णित है. या बाहर दिखाई देने वाले प्राकृत्तिक रूप से उपलब्ध 6 रस एवं शरीर के पाँच तत्व और एक महत्तत्व-परमगति मिलाकर 6 रस, सब मिलाकर 12 रस जिसे सूर्य अपने बारहो रूपों से अवशोषित करता है.
इन बारहो रसो को कुण्डली में बारह स्थान पर रख कर इनका विश्लेषण किया जाता है. इसके विश्लेषण को जिस प्रकाश (=ज्योति) के परिप्रेक्ष्य में विश्लेषित किया जाता है ==निश्चित सिद्धान्त, नियम (संहिता), मार्ग, रास्ता या विधि (=गणित) और परिणाम (फलित) कहते है. परिणाम को देखते हुए उसके निराकरण या उसमें वृद्धि के मार्ग अर्थात बनाना-बिगाड़ना तीनो अग्नियो पर आधारित है जिसे यन्त्र (Mechanism), तन्त्र (Medicine) एवं मन्त्र (Holy Rituals) कहते है. वृद्धि क्रम में यंत्र अकेला होता है, तंत्र में औषधि एवं यंत्र दोनों होता है तथा मन्त्र में यंत्र, तन्त्र एवं इन्द्रिय निग्रह तीनो होते है. इस प्रकार ये समस्त चराचर जगत का पालन, पोषण एवं सँहार करते है. देखें-
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