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“अग्नि, सूर्य एवं ज्योति की स्थिति का निर्धारण समग्र आधि व्याधि निर्मूलन का प्रथम सोपान है”

वेद विज्ञान
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“अग्नि, सूर्य एवं ज्योति की स्थिति का निर्धारण समग्र आधि व्याधि निर्मूलन का प्रथम सोपान है”
===“प्र वः शुक्राय भानवे भरध्वं हव्यं मतिं चाग्नये सुपूतम्।”
(ऋग्वेद मण्डल 7, चतुर्थ सूक्त, प्रथम मन्त्र)
अग्नि (=जठराग्नि, दावाग्नि एवं बड़वाग्नि), सूर्य (=द्वादशादित्य) एवं ज्योति (गणित, फलित एवं संहिता)
जठराग्नि- यन्त्र,===यं त्राणं परिव्राज्यताम् असौ तद्यंत्रं इति.
दावाग्नि- मन्त्र ===देवत्वात् सिद्ध्यर्थं प्रयुज्यते तृप्त्यर्थे वा तद्दावाग्निं इति.
बड़वाग्नि- तन्त्र === सूक्ष्मत्वात् सिद्धिं ववृद्ध्यं प्रगल्भंतु बडवा प्राप्नुयात्।
सूर्य- समस्त रसो को शोषित करना और उसको हजार गुना कर पुनः वर्षा के रूप में वापस करना सूर्य का स्वभाव है.
“सहस्रगुणमुत्श्रष्टे आदत्ते हि रसं रविः।
रसो की संख्या 6 है जो षडदर्शनों में वर्णित है. या बाहर दिखाई देने वाले प्राकृत्तिक रूप से उपलब्ध 6 रस एवं शरीर के पाँच तत्व और एक महत्तत्व-परमगति मिलाकर 6 रस, सब मिलाकर 12 रस जिसे सूर्य अपने बारहो रूपों से अवशोषित करता है.
इन बारहो रसो को कुण्डली में बारह स्थान पर रख कर इनका विश्लेषण किया जाता है. इसके विश्लेषण को जिस प्रकाश (=ज्योति) के परिप्रेक्ष्य में विश्लेषित किया जाता है ==निश्चित सिद्धान्त, नियम (संहिता), मार्ग, रास्ता या विधि (=गणित) और परिणाम (फलित) कहते है. परिणाम को देखते हुए उसके निराकरण या उसमें वृद्धि के मार्ग अर्थात बनाना-बिगाड़ना तीनो अग्नियो पर आधारित है जिसे यन्त्र (Mechanism), तन्त्र (Medicine) एवं मन्त्र (Holy Rituals) कहते है. वृद्धि क्रम में यंत्र अकेला होता है, तंत्र में औषधि एवं यंत्र दोनों होता है तथा मन्त्र में यंत्र, तन्त्र एवं इन्द्रिय निग्रह तीनो होते है. इस प्रकार ये समस्त चराचर जगत का पालन, पोषण एवं सँहार करते है. देखें-
“स गृत्सो अग्निस्तरुणश्चिदस्तु यतो यविष्ठो अजनिष्ट मातुः।
स यो वना युवते शुचिदन भूरि चिदन्ता समिदन्ति सद्यः।।”
(ऋग्वेद मण्डल 7 सूक्त 4, मन्त्र 2)
पण्डित आर के राय
Email-khojiduniya@gmail.com

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