ग्रंथों के अंदर जीवन संरक्षण एवं संवर्द्धन के उद्देश्य से उपलब्ध प्राकृतिक द्रव्यों (ठोस, द्रव एवं गैस) के दो रूप उनकी अवस्था को ध्यान में रखते हुए बताया गया है. जैसे यदि किसी पदार्थ को औषधि के रूप में ग्रहण करना है तो उसे खाद्य (Edible) बनाने के लिये कुछ रासायनिक क्रियायें करवायी जाती है जिससे उसे खाया जा सके और उसका पाचन क्रिया (Digestive System) के माध्यम से अंतरंगो (Internal Organs) द्वारा अवशोषण हो सके. जैसे लोहा की कमी इस शरीर में है तो सीधे लोहा तो खाया नहीं जा सकता। इससे उसमें गंधक (Sulfur) मिला दिया जाता है ताकि इसे पचाया जा सके. इसे हिंदी में लौह अयस्क तथा अंग्रेजी में फेरस ऑक्साइड (FeSO4) कहते है.
किन्तु इस लौह अयस्क को हम अंगूठी या लाकिट आदि के रूप में ग्रहण नहीं कर सकते। क्योकि इस प्रकार लोहे का अवशोषण चमड़े के माध्यम (Epidermic System) से होता है.
इसी प्रकार हीरे को अर्थात कज्जल (Carbon) को खाने योग्य बनाने के लिये पोटाश एवं फिटकरी से संयुक्त किया जाता है. किन्तु इसका लाकिट, अंगूठी आदि नहीं बनाया जा सकता। इसलिये ऐसे हीरा में अंतर पाया जाता है.
किन्तु बहुत ध्यान देने योग्य बात यह है कि देखने या वजन में कोई अंतर नहीं होता। जिससे इसकी पहचान कर पाना अत्यंत दुष्कर कार्य है.
जो हीरा पोटाश आदि से संयुक्त होता है उसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है. और प्रायः आजकल इसी हीरे का अधिकाधिक लोग प्रयोग करते है. क्योकि इसमें मिश्रण-पोटाश आदि होने से इसकी कीमत बहुत कम होती है तथा इसे कोई भी आसानी से खरीद सकता है. आज कल इसका प्रयोग सौन्दर्य प्रसाधन (Cosmetic Purpose) के लिये धड़ल्ले से हो रहा है. तथा लोग इसे “स्टेटस सिम्बल” के रूप में धारण कर रहे हैं. और सस्ता होने के कारण ग्रहपीड़ित लोग भी इसे ही ग्रहण कर रहे है.
अतः यदि कोई ऐसे पदार्थो का प्रयोग अर्थात औषधीय हीरे का प्रयोग ज्योतिषीय उद्देश्य से करता है तो उसे इसका कोई लाभ नहीं मिल सकता। और देखने में आया है क़ि लोग ज्योतिषीय उद्देश्य के लिये भी ऐसे ही हीरा धारण करते है तथा इस प्रकार उनका समय, श्रम और धन तीनो नष्ट होता है.
इसके अलावा जिस तरह से दर्द निवारक (Analgesic) दवा के रूप में एनासिन या (Acetic Salysilic Acid) का प्रयोग होते हुए भी विविध तरह के दर्द यथा पेटदर्द, पैर दर्द या सिरदर्द आदि के लिये इसके साथ अन्य रासायनिक पदार्थ मिलाकर एक दवा या टिकिया – स्पास्मिन्डोन, बुटाप्रोक्सीवान, ब्रूफेन आदि तैयार किया जाता है. उसी प्रकार ज्योतिष में भी गुरु ग्रह की विविध अवस्थाओं जैसे गुरु-शनि के चतुर्विध अशुभ सम्बन्ध के लिये पुखराज के स्थान पर विप्रकान्ति, गुरु-राहु के अशुभ चतुर्विध सम्बन्ध की अवस्था में पुखराज का दूसरा रूप व्यासमणि प्रयुक्त होता है. किन्तु आज कल आधुनिक ज्योतिषाचार्य गूगल या अन्य सर्च इंजन पर नेट पर ढूंढते है. मानो गूगल तथा नेट आदि पर प्राचीन महर्षियो ने इन रत्नो का विवरण विश्लेषण दे रखा है.
===नेट पर भी मेरे जैसा पण्डित ही इन रत्नो का नाम दे रखा होगा जो ज्योतिष को आधुनिक विज्ञान की चेरी या दासी मानता है तथा स्वयं आधुनिक टेक्नोलॉजी का विद्वान हाईफाई है. जिसका शास्त्रीय ज्योतिषीय ग्रंथो का कुछ भी ज्ञान नहीं है.
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