वर्ष 2007 में मैंने कुछ सज्जन समुदाय के साथ अपनी बात कही. मुझे निकारागुआ आमंत्रित किया गया था. यहाँ मैं अपनी गाथा व्यथा नहीं कहना चाहता। सीधे प्रसंग पर आता हूँ.
मैंने एक प्रयोग किया था. शरीर की त्राणिका (Tronical Vebula), पाहविका (Pasmasiyol Vebula) एवं श्रुश्वादिका (Riflodysina Vebula) शरीर के किसी भी कार्य चाहे वह भौतिक क्रिया या केवल मानसिक योजना जब तक ये तीनो सक्रीय रूप से संयुक्त नहीं होगें, वह पूर्ण नहीं होगा।
बार्हष्ण योग की न्याय प्रकोष्ठ आख्या में भी यही बताया गया है.—
इसके लिये मैंने एक सज्जन के हाथ पर एक पोटली रखा. उन्होंने तत्काल पूछा –“यह क्या है?======(1)
मैंने बताया कि यह तामृस्थि (CuSO4) है.
और उन्होंने उसे झट से टेबल पर रख कर हाथ पोंछा ========(2)
मैंने उन्हें बताया कि यह तामृस्थि अवक्षारकीय (Alcophinexilysed) है.
फिर उन्होंने उसे उठाकर सूंघना शुरू किया =======(3)
मैंने इसे स्पष्ट किया कि त्राणिका ने इसका विभेद नहीं किया अतः शेष दोनों गुण वाहिनियाँ इसके प्रति निष्क्रिय रहीं। जब बताया कि यह तामृष्टि है तो तत्काल श्रूषवादिका सक्रिय होकर उसे पृथक करने की क्रिया किया। क्योकि उसके अंदर पहले से इसकी संवेदना भरी पड़ी थी कि इसके समान पदार्थ को स्पर्श नहीं करना। फिर भी पाहविका ने कोई क्रिया नहीं दिखाई। किन्तु जब मैंने बताया कि यह अवक्षारीय अर्थात पुष्टिकारक हो चुका है तो पाह्विका भी सक्रीय हो गयी.
तब मैंने बताया कि चाहे किसी भी ग्रन्थ के मन्त्र (==न कि स्तोत्र या श्लोक) हो, इन्ही तीनो गुणों से सर्वप्रथम आच्छादित रहते है चाहे वह गायत्री मन्त्र–
भूः, भुवः, स्वः
हो या मृत्युञ्जय मन्त्र —
ह्रौं, जूं, सः
हो या नवार्ण मन्त्र—
ऐं, ह्रीं, क्लीं
====मुझे इसके विश्लेषण से क्या सम्मान मिला यह कहना “अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनने” जैसा हास्यास्पद विषय हो जायेगा।
किन्तु इसका उल्लेख मुझे यहाँ इसलिये करना पड़ा कि उन सज्जनो में से एक आज मेरे पास थे. तथा कल की मेरी भविष्य वाणी के सत्यापन हेतु अपने अन्य मित्रो से भी मिलाने लाये थे.
आज मेरा नवास्तिक अर्घ्य था. आज रविवार था. उपस्थ बेला में यदि सूर्य की किरण दिखाई नहीं देती तो अगले रविवार तक प्रतीक्षा करनी पड़ती। किन्तु मैंने कल ही अपनी गणना से बताया था कि इलाहाबाद में कल सूरज की किरण अवश्य दिखाई देगी। इसके लिये पूजन एवं उद्यापन आदि की पूरी सामग्री कल ही खरीद ली गयी थी.
===और 10 दिन के बाद इलाहाबाद निवासियों को आज सूरज का दर्शन हुआ.
मन्त्र सिद्धि के पूर्व उसके भावानुभाव तथा अभिव्यक्ति के अतिरिक्त उदात्त, अनुदात्त, लुप्त तथा श्वास आदि का क्रिया समन्वय यदि नहीं किया गया तो मन्त्र सिद्धि, जाप एवं उसकी सिद्धि सब असफल, निरर्थक एवं घातक है.
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