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रोग और उपाय- यजुर्वेद की दृष्टि में-

वेद विज्ञान
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रोग और उपाय- यजुर्वेद की दृष्टि में-
रोग, कष्ट या हानि का निदान या पहचान किये बिना दवा या उपाय निश्चित रूप से हानिप्रद है. वर्तमान समय में कटुवासा निगर्द्धि (-जिसे वर्तमान समय में कर्कट या कैंसर कहा गया है) के लिये एलोपैथी में ड्यूराक्सल्फोसिन, बेटोथिड्रॉइड, मैगडॉनिकरोल तथा आयुर्वेदिक औषधियों में घटोज, निशाल, गूगल तथा दिव्यांश रस आदि का प्रयोग हो रहा है, वह निश्चित ही घातक है.
यदि रक्त की अर्द्धुवाहिका (सायोड्रिया) सर्वारव (हिमोप्लास्ट) का निषेचन न करे तो जैवाह (प्लास्मोफेरोल) सदा रिक्तिका में छिद्र करता रहेगा। किन्तु एलोपैथ जहाँ केवल रिक्तिका के छिद्र ही केवल बंद करता है और आयुर्वेद में जहाँ अर्द्धुवाहिका के कीटाणु ही केवल मारे जाते है, किन्तु निषेचन कोई नहीं करवाता है वहाँ ऊतकीय विद्रूपता धीरे धीरे भयंकर होती चली जाती है. इसका एक बहुत अच्छा संकेत यजुर्वेद के चौबीसवें अध्याय के दूसरे मन्त्र में मिलता है.
“रोहितो धूम्ररोहितः कर्कन्धुरोहितस्ते सौम्या बभ्रुरुणबभ्रुः शुकबभ्रुस्ते वारुणाः शितिरंध्रो अन्यतः शितिरन्ध्रः समंतशितिरन्ध्रस्ते सावित्राः शीतिबाहुरन्यतः शीतिबाहुः समन्तशितिबाहुस्ते बार्हस्पत्याः पृषती क्षुद्रपृषती स्थूलपृषति ता मैत्रावरुण्यः।”
ऊपर के मन्त्र में “अन्यतः शितिरन्ध्र” से अँग से अँग में छेद तथा “समंतशितिरन्ध्रः” से अँग के चारो ओर छिद्र का संकेत किया गया है. तथा बभ्रु, रोहित, सौम्य एवं कर्कन्धु रोहित कर उनके रँगो एवं प्रकृति का निर्देश किया गया है.
पशुओ का उल्लेख कर यह बताया गया है कि रोग, कष्ट या हानि की प्रकृति एवं निराकरण, निवारण आदि का प्रकार क्या है.
देखें-
यदि किसी अँग में स्वतंत्र रूप से विद्रधि (कर्कट या कैंसर) हो तो “बभ्रुः” अर्थात बभ्रुकान्तमणि नग, बभ्रुश्याम वनस्पति तथा बभ्रुजिह्वा तरल का समेकित प्रयोग छिद्रकारक तन्तुओं का नाश करता है.
यदि किसी अँग में किसी अन्य अँग के कारण विद्रधि (=कर्कट या कैंसर-Malignancy) हो तो “कर्कन्धुरोहित” अर्थात काकमणि नग, कांकसा वनस्पति एवं काकराग तरल का समेकित प्रयोग छिद्रकारक ततन्तुओ एवं वाहिकाओं का नाश करता है.
—किन्तु कैंसर या ऐसे ही किसी अन्य विद्रधि के लिये थोड़े बहुत गंधायन (सल्फमेरिलीन) के आतंरिक उलटफेर से इलाज़ किया जाता है. जिससे कैंसर निर्मूल तो नहीं ही होता है, इसके विपरीत अन्य उपद्रव भी खड़े हो जाते है.
इसके लिये सर्व प्रथम रोगी की आकृति, प्रकृति, ग्रहप्रभाव एवं आवास पर्यावरण का अध्ययन एवं विश्लेषण आवश्यक होता है.
जैसे यदि सिंह लग्न की कुण्डली में छठे भाव में स्थित गुरु को व्ययभाव में स्थित मंगल देखता हो तथा सूर्य 8 अंशो से कम पर हो तो बभ्रावयः (एकाकी छिद्र वाला कैंसर) होगा।
किन्तु यदि मिथुन लग्न की कुण्डली में आठवें भाव में गुरु हो तथा दूसरे भाव में शनि-बुध की युति हो तो कर्कन्धावयः (बहुआयामी कैंसर) होगा। पण्डित आर. के. राय
Email- khojiduniya@gmail.com

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