मानव के साँस लेते समय नथने से दश अंगुल परिमाण साँस अन्दर घुसती है. तथा साँस छोड़ते समय बारह अंगुल साँस की वायु बाहर निकलती है. इसका परिक्षण एक लकड़ी के पतले तख्ते पर नथने से बारह अंगुल की दूरी पर रुई का टुकडा रखें. तथा सामान्य सांस बाहर छोड़ें. यदि उस पारकर वायु बाहर चली जाय तो रुई हटाकर देखें कि उस साँस की गति कहाँ तक पहुंची है. स्वाभाविक अवस्था में बारह अंगुल से ज्यादा गति होने पर समझ लेना चाहिये कि जीवन क्षय के पथ पर अग्रसर हो चुका है. ऐसा मालूम होने पर प्राणायाम के द्वारा आसानी से वह दूर हो सकती है.
मनुष्य के साँस छोड़ते समय बारह अंगुल दूरी तक साँस की वायु जाती है. लेकिन भोजन, गमन, रमण, गान आदि विशेष विशेष कामों में स्वाभाविक नियम की अपेक्षा भी ज्यादा परिमाण से साँस बाहर निकलती है. यथा-
देहाद्विनिर्गतो वायुः स्वभावाद्यादशान्गुलिः.
गायने षोडशांगुल्यो भोजने विंशतिः तथा.
चतुर्विशांगुलिः पांथे निद्रायां त्रिदशांगुलिः.
मैथुने षटत्रिंशटुक्तं व्यायामे च ततोSधिकम.
स्वभावेSस्य गतौ मूले परमायु: प्रवर्द्धते.
आयुक्षयोSधिके प्रोक्तो मारुते चांतरोद्गते.
अर्थात गान करते समय सोलह अंगुल, भोजन करते समय बीस अंगुल, चलने पर चौबीस अंगुल, सोते समय तीस अंगुल एवं स्त्री संसर्ग के समय छत्तीस अंगुल साँस की गति होती है. थकावट पैदा करने वाले परिश्रम में इससे भी अधिक साँस बढ़ जाती है.
किसी भी काम में बारह अंगुल से ज्यादा साँस की गति होने पर जीवन शक्ति का या प्राण का क्षय समझना चाहिये.
प्राणायाम के द्वारा इसी साँस की गति को नियंत्रित करते हुए और अंत में इसे रोक दिया जाता है. और जो रोक दिया उसकी अंतिम साँस अभी आएगी ही नहीं.
साँसों को रोक कर रखने के कारण जलीय प्राणियों की आयु बहुत लम्बी होती है. कछवा को लीजिये. यह पानी या मिट्टी के अन्दर हजारो सालो तक पडा रह सकता है.
नियमित रूप से प्राणायाम करने पर दीर्घ जीवन लाभ होता है. प्राण शब्द का अर्थ वायु होता है. और आयाम का अर्थ रुकावट या ठहराव होता है. प्राणायाम के समय कुम्भक करने पर प्राणवायु रुकता है. साँस नहीं चलती. इसीलिये जीवन दीर्घ होता है.
इसीलिये प्राणायाम के द्वारा वायु निष्क्रमण की गति-आवृत्ति पर अवरोध स्थापित किया जाता है. इसे प्राणायाम के द्वारा थोड़ा थोडा करके नियंत्रित या कम किया जाता है. एक एक अंगुल कम करते करते —-अर्थात स्वाभाविक गति बारह अंगुल की होती है—अतः एक एक अंगुल कम करते करते इअसके ऊपर विजय प्राप्त किया जा सकता है.
दुर्योधन का उदाहरण सब लोग जानते हैं. जब अपने प्रतिज्ञा का बदला लेने के लिये भीम उसका पीछा किये तो वह जाकर एक तालाब में छिप गया. एक सप्ताह तक वह जल के अन्दर योग-प्राणायाम विद्या के बल पर छिपा रहा. वह तो भगवान् श्रीकृष्ण ने उसके पद चिन्हों से पहचान कर उसके तालाब में छिपे होने को उजागर किया. अस्तु,
यदि प्राणायाम के बल पर एक एक अंगुल भी साँस की गति कम की जाती है तो उसका अति दिव्य फल प्राप्त होता है–
“एकान्गुलकृतेन्यूने प्राणी निष्क्रामति यदा.
आनंदस्तु द्वितीये स्यात् कविशक्तिस्तृतियके.
वाचः सिद्धिश्चतुर्थे तु दूरदृष्टिस्तु पञ्चमे.
षष्ठेत्वाकाशगमनं चंडवेगश्च सप्तमे.
अष्टमे सिद्ध्यश्चाष्टौ नवमे निधयो नव.
दशमे हंसचारश्च गंगामृतरसं पिबेत्.
आनखाग्रे प्राणपूर्णे कस्य भक्षंच भोजनम्.”
–—पवन-विजय स्वरोदय
—–अब आप स्वयं देखें कि लोग जो आज कपालभाति या भस्रिका आदि करते हैं उसे कैसे करते हैं. बल पूर्वक जोर जोर से एवं जल्दी जल्दी साँस अन्दर बाहर करते हुए वेग पूर्वक साँस लेते एवं छोड़ते हैं. और इस क्रिया में स्वभावतः साँस की गति लगभग चौबीस अंगुल होती है. आप इसे स्वयं देख सकते हैं. जो स्वाभाविक साँस की गति का दूना है. अब आप स्वयं बताएं कि इस योग का अच्छा परिणाम मिलेगा या बुरा. आयु बढ़ेगी या घटेगी?
किन्तु आज कल लोगों में एक “Craze” बन गया है. बस कपालभाति करना है. — योग करना है.
और यही कपालभाति प्राणायाम की सच्चाई है.
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