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कैसा फूल पूजा में चढाते हैं शिव को?

वेद विज्ञान
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—अर्कपुष्पैः कृता पूजा यदि देवाय शम्भवे.
अर्कपुष्पसहस्रेभ्यै: करवीरं प्रशस्यते .
करवीरोसह्स्रेभ्यो बिल्वपत्रं विशिष्यते.
बिल्वपत्रसहस्रेभ्यः शमीपत्रं विशिष्यते.
अर्कपुष्पसहस्रेभ्यः शमिपुष्पम विशिष्यते.
शमिपुष्पसहस्रेभ्यः कुशपुष्पम विशिष्यते.
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अपामार्गसहस्रेण श्रीमन्नीलोत्पलं वरम.
नीलोत्पल सहस्रेभ्यः यो मालां संप्रयच्छति.
(सूर्य पुराण, अध्याय 43, पंचाक्षर प्रभावादि)
आक के पुष्पों से यदि शिवलिंग की पोजा होवे तो उत्तम होती है. और करवीर के पुष्प एक हजार आक के पुष्पों से भी उत्तम माना गया है. एक हजार करवीर के पुष्प से उत्तम एक बिल्वपत्र से शिवलिंग की पूजा उत्तम होती है. एक हजार बिल्वपत्र से भी उत्तम पूजा शिवलिंग की एक शमी के पुष्प से मानी गयी है. एक सहस्र शमी के पुष्पों से उत्तम एक कुश का पुष्प माना जाता है. एक सहस्र कुश के पुष्प से उत्तम शिवलिंग की पूजा एक पद्म पुष्प से मानी जाती है. एक सहस्र पद्म पुष्प से उत्तम एक वक् पुष्प से शिवलिंग की पूजा उत्तम मानी गयी है. एक सहस्र वक् पुष्प से उत्तम एक धतूरे का पुष्प माना जाता है. एक सहस्र धतूरे के पुष्प की पूजा से उत्तम एक वृहत्पुष्प से की गयी शिवलिंग की पूजा होती है. एक सहस्र वृहत्पुष्प से उत्तम एक द्रोण पुष्प से की गयी पूजा होती है. एक सहस्र द्रोण पुष्प से की गयी शिवलिंग की पूजा से उत्तम एक अपामार्ग के पुष्प से की गयी पूजा होती है. एक सहस्र अपामार्ग के पुष्प से शिवलिंग की पूजा से उत्तम श्रीमन्नीलोत्पल होता है. नीलोत्पल के एक सहस्र पुष्पों से श्रेष्ट शिवलिंग की वह पूजा है जिसमें एकमाला इसका समर्पित किया जाता है.
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किन्तु बहुत पश्चात्ताप का विषय है कि अपने आलस्य, अरुचि एवं अन्यमनस्कता को छिपाने के लिये लोग कह देते हैं कि प्रेम से भगवान् को समर्पित एक पत्ता भी महान फल देता है. किन्तु यह नहीं कहते कि इतना समय कौन बर्बाद करने जाय या ये सब फूल कौन इकट्ठा करने जाय?
और ====
“मिष्ठान्नाभावे पत्रं समर्पयामि” कहते हुए पूजा का समापन कर दिया जाता है.
अगर फल, मिष्ठान्न आदि के अभाव में भगवान् पत्र-पुष्प से प्रसन्न हो सकते है तो मंदिर या शिवलिंग के पास जाने की आवश्यकता ही क्या है? मन से ही सब कुछ समर्पित कर दीजिये. मनसा पूजा सर्वश्रेष्ठ मानी गयी है.
किन्तु यह नहीं सोचते कि इस स्थिति तक पहुँचने का मार्ग क्या है?
यही पत्र-पुष्प, फल, मिष्ठान्न, नैवेद्य, वस्त्र आदि समर्पण करते तथा इस प्रकार भगवान् की सेवा करते इस स्थिति तक पहुंचा जाता है कि अब भगवान् को प्रसन्न करने के लिये किसी भी वस्तु को चढाने की आवश्यकता नहीं रह जाती.
जिस प्रकार शरीर ढकने के लिये जो वस्त्र उपयोग में लाया जाता है उसमें प्रयुक्त धागा कई वस्तुओं से बनता है. उसके बाद उसकी सिलाई तथा आकार देकर तब उसे पहनने योग्य बनाया जाता है. सिला सिलाया वस्त्र अपने शरीर पर ठीक नहीं आ सकता. उसी प्रकार उपरोक्त स्थिति प्राप्त करने के लिये, मंदिर, फल, पुष्प, दीप, धूप एवं स्तुति आदि अनुवार्य है.
अभी मैं बताता हूँ कि शिवलिंग पर कौन से पुष्प नहीं चढाने चाहिए–
बंधूकं केतकीपुष्पं कुंदयूथीमादन्तिका:.
शिरीषं चार्जुनं पुष्पं प्रयत्नेन विवर्जयेत.
अर्थात बंधूक, केतकी, कुंद, यूथिका, मदन्तिका, शिरीष और अर्जुन के पुष्प से शिवलिंग की पूजा नहीं करनी चाहिये.
इसके अलावा-
केशकीटापविद्धानि शीर्णपर्युषितानि च.
स्वयं पतितपुष्पाणि त्येजेदुपहितानि च.
अर्थात ज्यादा तंतु या केश से उलझा हुआ, कीड़ों से खाया हुआ, पुराना या बासी, फटा हुआ, अपने से धरती पर गिरा हुआ तथा दूसरे के लाये पुष्प से शिवलिंग की पूजा नहीं करनी चाहिये.
दोष छुडाने के लिये अह देते हैं कि मैंने तो पैसा देकर पुष्प लिया है. अब तो यह मेरा हो गया. यह केवल मानसिक संतोष के लिये है. अन्यथा यह दूसरे का तोड़ा हुआ ही कहलायेगा.
नहीं पुष्प मिल पाता है तो कोई आवश्यकता नहीं है कि वांछित पुष्प चढ़ाया ही जाय.
और भी-
कनकानि कदम्बानि रात्रौ देयानि शंकरे.
दिवा शेषाणि पुष्पाणि दिवा रात्रौ च मल्लिका.
अर्थात कनक एवं कदम्ब के पुष्प शिवलिंग के ऊपर रात्री में ही चढाने चाहिये. शेष पुष्पों को दिन में ही अर्पित करे. मल्लिका के पुष्प दिन आर रात्रि दोनों में ही अर्पित किये जा सकते है. अर्थात संध्या को छोड़कर मल्लिका के पुष्प दिन और रात दोनों में ही अर्पित किये जा सकते है.
—-विशेष विवरण के लिये चौखम्भा प्रकाशन से प्रकाशित द्विजेन्द्र द्वारा व्याख्या कृत सूर्य पुराण को देखा जा सकता है.

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