आम जनता में यह भ्रम या दहशत फैली हुई है कि मीठा चीज खाने से मधुमेह या चीनी रोग होता है. यह भ्रम टूट जाएगा यदि देहात में जाकर देखें कि कैसे एक किसान खांड से बने शरबत के साथ नित्य देहाती मोटी रोटी दबाकर खाता है और शतप्रतिशत स्वस्थ रहता है.
इसके विपरीत शहरी बहुत संयम से कभी कभार कोई एक मिठाई खाकर भी मधुमेह का असाध्य रोगी बन जाता है.
यदि ध्यान दें और अध्ययन करें तो आप को पता चलेगा कि आयुर्वेद की समस्त मधुमेह निरोधी औषधियां मधु या गुड़ के साथ लेने को कही जाती हैं.
यह सत्य है कि पाचन प्रणाली के किसी अन्तरंग द्वारा जब उसके हिस्से का कोई खाद्य पदार्थ नहीं पाच पाता है तो वह मूत्र-मल मार्ग द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है. यह किसी भी अन्तरंग द्वारा हो सकता है- चाहे वह यकृत हो, पित्ताशय हो, अग्न्याशय हो, प्लीहा हो या आमाशय हो. भोजन के प्रत्येक अभाग को प्रत्येक अन्तरंग नहीं पचाता बल्कि उसके अलग अलग अवयवों को विविध अंतरंगो द्वारा पचाए जाते है. जैसे सुधांशु (Calcium) जो भोजन में पाया जाता है उसे एकमात्र अग्न्याशय ही पचा पायेगा, भोजन के जह्नलावन अर्थात (Phosphorus) को मात्र क्षुद्रान्त्र ध्रुवा (Syello Intestinica) ही पचा सकती है, कोई अन्य भाग नहीं. इस प्रकार जिस अंग का जो भाग नहीं पचता है वह शरीर से बाहर निकलता जाता है. तथा कालान्तर में जब यह क्रिया निरंतर चलती रहती है तो बाद में वह अंग सदा के लिये निष्क्रिय हो जाता है तथा अशक्तता की स्थिति में उसका सहयोग अन्य अंगो को नहीं मिल पाता है. और तब वह शरीर के अन्य उपादानो को शर्करा में तोड़कर शरीर से बाहर निकालता रहता है.
शर्करा के मुख्य तत्व कार्बन ओक्सिजन एवं हाइड्रोजन हैं. यह दूषित या निष्क्रिय अंग अन्य उपादानो यथा Deloflevin से ओक्सिजन तथा Lemthoviyan से कार्बन बहुत आसानी से पृथक किया जा सकता है. और शरीर के ये दोनों महत्वपूर्ण पोषक तत्व ओक्सिजन एवं कार्बन से पृथक होकर रक्त को अशुद्ध करने लगते है. ऐसी अवस्था में कोई व्यक्ति मीठा का या शर्करा युक्त भोजन का सर्वथा त्याग भी कर देता है तो भी शरीर से शर्करा का निकलना चालू रहता है.
इसके अलावा यदि शर्करा में रसमंड तथा तिक्तारिका नहीं है तो उसका किसी भी अन्तरंग द्वारा पाचन नहीं हो सकता है. और यदि इसके पाचन हेतु किसी अंग द्वारा जबरदस्ती किया जाता है तो वह अंग कालान्तर में शिथिल एवं निष्क्रिय बनकर रह जाता है. वर्तमान मिल से निर्मित चीनी में इन दोनों तत्वों का सर्वथा अभाव रहता है. किन्तु इसके विपरीत गन्ने से सीधे निर्मित बिना छाने खांड या गुड में ये दोनों पदार्थ प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं. जिससे शर्करा यदि शातद्रिका अर्थात बहुत भी कठोर होगा तो भी यह बिखंडित कर दिया जाता है.
आयुर्वेद में यह बात भली भांति विदित है. अन्यथा गन्ने का सिरका, जामुन का सिरका तथा मधु में तो मीठा बहुत ज्यादा मात्रा में पाया जाता है. फिर शर्करा निवारक औषधि के साथ इन रसो का अनुपान क्यों आवश्यक माना जाता?
अतः सर्वप्रथम शरीर से शर्करा उत्सर्जित होने का कारण निश्चित करें उसके बाद औषधि निर्धारित करें. न कि मीठा खाना ही छोड़ दें.
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