क्योकि उससे टकराकर लौटने वाली किरणें हमारी आँख पर पड़ती हैं जिससे वह वस्तु हमें दिखाई देती है.
और यदि उस वस्तु से टकराकर लौटने की क्षमता मिटा दी जाय अर्थात उस वस्तु में से वह कारक हटा दिया जाय जिससे प्रकाश परावर्तित होता है तो क्या वस्तु दिखाई देगी? नहीं दिखाई देगी. वह वस्तु प्रकाश को लौटाने के बदले में शोषित कर ले तो वस्तु कैसे दिखाई देगी?
प्रचण्ड धुप या गर्मी में भैंस आदि जिनके रंग काले होते हैं, वे व्याकुल हो जाते हैं तथा दौड़कर पानी में घुस जाते है. या शरीर पर कीचड-धूल आदि लपेट लेते हैं. क्यों? क्योकि उनके शरीर से ऊष्मा उत्पादक किरणें लौटती नहीं बल्कि शोषित कर ली जाती हैं. जिससे वे गर्मी से व्याकुल हो जाती हैं.
इसके विपरीत सफ़ेद गाय धूप में भी चरती रहती हैं किसी तालाब या गड्ढे में नहीं जाती हैं. वर्ण शंकर गायें जैसे जर्सी —इन्हें बार बार नहलाना पड़ता है. क्योकि इनका रंग काला होता है और इनका शरीर गर्मी सोखता है.
ठीक इसी प्रकार यदि शरीर में से वह वस्तु या पदार्थ विलुप्त कर दिया जाय जिससे कोई प्रकाश टकराकर आँखों तक पहुंचता है तो शरीर भी दिखाई देना बंद हो जाएगा. और व्यक्ति अंतर्ध्यान हो जाएगा.
और–
पञ्चप्राण स्वरुप वायु- जिनका विषद वर्णन मैं अपने पूर्ववर्ती लेखों में दे चुका हूँ, यदि उन्हें कुण्डलिनी में केंद्रीभूत कर दिया जाय तो ब्रह्मरंध्र के कोटर में पहुँच कर स्थिर हुई कुण्डलिनी इंगला पिंगला तथा सुषुम्ना नाड़ियों के प्रचण्ड ऊर्जावान प्रकाशगति के सहारे इन वायु स्वरुप प्राणसमूह को अंतरिक्ष में प्रक्षिप्त कर देती है. प्रकाश देने वाले इस प्राणसमूह के निर्गत होते ही शरीर प्रकाश परावर्तन की क्षमता से रहित हो जाता है तथा दिखाई देना बंद हो जाता है.
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