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भूतप्रेत एवं अज्ञात विघ्न बाधा निवारण हेतु

वेद विज्ञान
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—-भूतप्रेत एवं अज्ञात विघ्न बाधा निवारण हेतु—
शं ते अग्निः सहाद्भिरस्तु शं सोमः सहौषधीभिः .
एवाहं त्वां क्षेत्रियान्निर्ऋत्या जामिशंसाद द्रुहो मुन्चामि वरुणस्य पाशात.
अनागसं ब्रह्मणा त्वा कृणोमि शिवे ते द्यावापृथिवी उभे स्ताम.
(अथर्ववेद भाग 1 काण्ड 2 पाशविमोचन अध्याय 10 सूक्त 2)
उक्त सूक्त त्रिष्टुप छंद में है. इसके देवता भ्रिग्वंगिरा हैं. इस मन्त्र पर ध्यान देने से कई तथ्यों का स्पष्टीकरण हो रहा है. अग्नि, सोम एवं वरुण से द्यावापृथिवी के द्वारा गुह्य रूप से निऋति राक्षस से औषधि निष्कासन बताया जा रहा है,
अम्लीयता युक्त अग्नि, क्षारीय गुण युक्त सोम एवं लवण गुण युक्त वरुण के मिश्रित यौगिक रूप को त्रिताप उत्पन्न करने वाला एवं इसे विनष्ट करने वाला बताया गया है-
तं जघ्नुर्सोमः वारुण्याग्निद्यौकषः त्रेधा ह्यर्वीं न्यवेयु:.
अर्थात ताम्रश्राव या ताम्बे के पात्र में अग्नि के द्वारा निषेचित. क्या निषेचित?
मर्ध्यु वामारि संगिरः विपर्ययम
अर्थात हरसिंगार या जटामांसी या नागरमोथा या तीनो अर्थात इन तीनो को ताम्बे के पात्र में इतना सड़ाना कि इसमें से वाष्प निकलने लगे. इन तीनो को पानी में डालकर ताम्बे के बर्तन में रखने से कुछ ही दिनों में यह स्वतः धीरे धीरे उबलने लगता है.
इसी प्रकार रसकपूर, समुद्रफेन एवं मांझीबेल को मिटटी के बर्तन में बंद कर रख देने से यह सफ़ेद लवण के रूप में बदल जाता है.
ऐसे ही आमला, ढेंकुवार एवं नागफनी के रस को मिटटी के पात्र में कुछ दिनों रख देने से शराब बन जाती है.
अब मूल मन्त्र पर ध्यान दें–
अनागसं ब्रह्मणा त्वा कृणोमि शिवे
अर्थात ब्रह्म वाक्य में शिव का स्वर संचार–
ॐ अग्निः पूर्वेभिर्ऋषिभिरिडयो नूतनैरुत. स देवां वच्छती.
इसका सस्वर पाठ.
यह इस प्रकार बनता है.
उपर्युक्त प्रकार से बनाए पदार्थों में से पहले रस द्वारा किसी चिकने पत्थर को उपर्युक्त मन्त्र पढ़ते हुए अभिषेक करें. फिर उसे लवण के चूर्ण में ढक दें. उसके बाद उस पर अम्लीय पदार्थ गिराएं. धुवाँ निकलना शुरू हो जायेगा.
प्रभावित व्यक्ति को क्षण भर के लिये उस धुवाँ का पास भेजें. या क्षण भर के लिये इस धुवें को घर में प्रवेश करने दें. उसके बाद शेष बचे पत्थर को निकाल कर रख लें.
वह व्यक्ति दोष रहित हो जाएगा.
उसे नित्य उस पत्थर को दूसरे पत्थर पर घिस कर ललाट पर टीका लगाये. या घर के मुख्य द्वार पर टीका लगाए.
घर में ऐसी कोई बाधा कभी प्रवेश कर ही नहीं पाएगी.
यह पत्थर सदा के लिये प्रभावी रहेगा.
ध्यातव्य– इस औषधि को बनाने वाले को चाहिये कि वह पहले से ही गोखरू, कोदो एवं मकोय के बीज को उबाल कर उसके रस में भिगोई रूई अपनी नाक पर लगाये रखे. कारण यह है कि इस पूरी प्रक्रिया में मोनो लिनेक्सीडीन हाईड्रोसल्फाइड एवं ट्राईक्लोरो हैपोनेट गैस का निष्पादन होता है.
—-इससे सम्बंधित या इसके सदृश एनी लेख एवं विवरण फेसबुक पर उपलब्ध हैं.
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