क्या लिंग का तात्पर्य “प्रतीक” या “चिन्ह” होता है?–
वेद विज्ञान
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—क्या लिंग का तात्पर्य “प्रतीक” या “चिन्ह” होता है?-—
तो क्या शिवलिंग केवल भगवान् शिव का “चिन्ह” मात्र है? क्या शिवलिंग भगवान् शिव का सम्यक स्वरुप नहीं? क्या लिंग भगवान् के केवल चिन्ह मात्र तक सीमित है? क्या भगवान् शिव की व्यापकता मात्र चिन्ह में मर्यादित एवं सीमित होकर रह गयी है?
दूसरी बात यह कि यदि लिंग का तात्पर्य मात्र चिन्ह होता है अर्थात शिवलिंग मतलब शिव का प्रतीक तो ब्रह्मालिंग, विष्णुलिंग, हनुमान लिंग, कालिका लिंग, सरस्वती लिंग आदि भी होना चाहिये. और उस लिंग को इन देवताओं का प्रतीक मान लेना चाहिये? और यदि लिंग से किसी देवता को प्रतीक मान लिया जाता है तो फिर-भग, पूषा, अर्यमा आदि देवता जिनको कोई लिंग-योनि नहीं था, उनका क्या?
आगे, प्रतीक का तात्पर्य सीमित होता है जैसे शिवलिंग मतलब यदि शिव का प्रतीक अर्थात यह केवल प्रतीक है, पूर्ण शिव नहीं–प्रतीक मात्र. और इस प्रकार लिंग की महत्ता समाप्त कर एक प्रतीक मात्र के रूप में ग्रहण किया जाता है. जब कि शिवलिंग सम्पूर्ण शिव है. इसमें प्राणप्रतिष्ठा होती है. और वेद के अध्यायों से इसका अभ्यर्चन होता है. तो क्या केवल प्रतीक मात्र की पूजा की जाती है? सम्पूर्ण शिव की नहीं?
मेरी समझ से किसी देवी देवता के प्रतीक की पूजा नहीं, अपितु उसके सम्पूर्ण स्वरुप की परिकल्पना कर पूजा की जाती है. और यदि इसे मात्र प्रतीक मान लिया जाय तो इससे लिंग की गुरुता-महत्ता-व्यापकता आदि लुप्त हो जाती है.
अब आते हैं शाब्दिक अर्थ की तरफ जिसे हमने अपनी सुविधा के लिये रूपांतरित कर लिया है.
स्त्रीलिंग, पुल्लिंग आदि इनके स्वरुप के बोधक हैं न की इनके महत्त्व-प्रभाव आदि के. स्त्रीलिंग में व्यभिचारी तथा सदाचारी आदि सभी स्त्रियाँ आ जाती हैं. किन्तु शिवलिंग में क्या ऐसी कल्पना की जा सकती है? शिवलिंग व्यक्तिवाचक संज्ञा है जबकि स्त्रीलिंग जातिवाचक संज्ञा है. शिवलिंग अकेला और एकमात्र है. अन्य किसी देवता या देवी के आगे पीछे लिंग आदि लगाकर उसकी पूजा नहीं कर सकते. शिवलिंग प्रतीक मात्र नहीं बल्कि पूर्ण ब्रह्म-ज्ञान-सत्य है. इसे प्रतीक मात्र मानकर इसे सीमित नहीं किया जा सकता. पत्थर का टुकड़ा केवल टुकडा होता है जबकि पत्थर का पहाड़ एक पहाड़ होता है. उस टुकड़े को पहाड़ मानकर उसके साथ व्यवहार नहीं किया जा सकता- यथा पत्थर के एक एक टुकड़े को चुनकर घर बनाया जाता है उसके स्थान पर पहाड़ चुन चुन कर घर की दीवार में नहीं लगाया जा सकता.
यदि लिंग को भगवान् शिव का पूर्ण ज्ञानरूप, अगम्य एवं अक्षुण्ण महिमा वाला न मानकर केवल प्रतीक मान लिया जाता है तो शिवलिंग की महिमा सीमित हो जायेगी. यह शिवलिंग कोई चिन्ह नहीं अपितु स्वयं पूर्ण ब्रह्म है. इसका कोई दूसरा रूप नहीं. इसका संबोधन कदापि दुसरे के लिये नहीं किया जा सकता. जबकि स्त्रीलिंग कहने पर समस्त स्त्री जाती का ही संबोधन हो जाता है. किन्तु शिवलिंग कहने पर अन्य किसी का संबोधन नहीं किया जा सकता.
इसके लिये मेरे पिछले लेखों को देखा जा सकता है जिसमें प्रामाणिक, तार्किक एवं ठोस आधार पर आधारित शिवलिंग की व्याख्या दी गयी है.
यह लेख उसी से सम्बंधित है. क्योकि मेरे एक मित्र ने शिवलिंग को शिव का प्रतीक मात्र बताया है. अतः यह लेख उसी से संदर्भित है.
अस्तु, जो भी हो. मुझे लोगों की अपने विविधि व्याख्या से कोई नाराजगी या दुःख नहीं है. आप का विश्लेषण सत्य हो सकता है. इस पर तर्क-वितर्क धीरे धीरे आगे चलकर अब कुतर्क का रूप ले लेगा. अतः मैं इस संदर्भित प्रकरण को यही विराम दे रहा हूँ. और आगे इस पर मेरी सामर्थ्य नहीं है जिससे कुछ कह सकूं.
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